श्रीनीलाम्बर चक्रवर्ती (भगवान चैतन्य महाप्रभु जी के
नानाजी) जी श्रीहट्ट के निवासी थे । आपकी चार सन्तानें थीं । आप बंगाल के
वेलपुकुरिया गाँव में रहते थे । आपकी सबसे बड़ी सन्तान थी श्री योगेश्वर पण्डित, फिर
श्रीमती शची देवी, फिर श्रीरत्नगर्भाचार्य और फिर श्रीमती सर्वजया । श्रीमती शची
देवी का विवाह श्रीजगन्नाथ मिश्र जी से हुआ था। श्रीमती शची देवी में माँ यशोदा व माँ
देवकी का प्रकाश था। श्रीमती सर्वजया का विवाह श्रीचन्द्रशेखर जी से हुआ था।
आठ कन्याओं (जो नहीं रहीं) के उपरान्त श्रीबलदेव
अर्थात श्रीविश्वरूप श्रीमती शची देवी व श्रीजगन्नाथ मिश्र जी के यहाँ प्रकट् हुये।
श्रीविश्वरूप के छोटे भाई के रूप में भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु प्रकट् हुये ।
श्रीमती
शची माँ के भाई श्रीरत्नगर्भाचार्य के पुत्र थे श्रीलोकनाथ (आप श्रीलोकनाथ गोस्वामी से भिन्न हैं) । 16 वर्ष की आयु में श्रीविश्वरूप जी ने जब संसार से विरक्त होने का निर्णय लिया तो श्रीलोकनाथ जी आपके साथ चल दिये। दोनों दक्षिण दिशा की ओर गये व भगवद् - इच्छा से श्रीईश्वर पुरीपाद जी से दीक्षा प्राप्त की। जब सन्नयास लिया तो आपका (श्रीविश्वरूप) का नाम हुआ श्री शंकरारण्य पुरी। श्रीलोकनाथ जी आपके शिष्य हुए। आपके सन्नयास कि तिथि को ही श्रीविश्वरूप महोत्सव कह कर मनाया जाता है । श्रीलोकनाथ जी आपकी अभूतपूर्व ढंग से सेवा करते थे।
शची माँ के भाई श्रीरत्नगर्भाचार्य के पुत्र थे श्रीलोकनाथ (आप श्रीलोकनाथ गोस्वामी से भिन्न हैं) । 16 वर्ष की आयु में श्रीविश्वरूप जी ने जब संसार से विरक्त होने का निर्णय लिया तो श्रीलोकनाथ जी आपके साथ चल दिये। दोनों दक्षिण दिशा की ओर गये व भगवद् - इच्छा से श्रीईश्वर पुरीपाद जी से दीक्षा प्राप्त की। जब सन्नयास लिया तो आपका (श्रीविश्वरूप) का नाम हुआ श्री शंकरारण्य पुरी। श्रीलोकनाथ जी आपके शिष्य हुए। आपके सन्नयास कि तिथि को ही श्रीविश्वरूप महोत्सव कह कर मनाया जाता है । श्रीलोकनाथ जी आपकी अभूतपूर्व ढंग से सेवा करते थे।
सन्नयास के लगभग दो वर्ष के उपरान्त एक दिन श्रीईश्वर
पुरी जी आपको मिलने आये, तो श्रीशंकरारण्य जी ने उन्हें प्रणाम किय। फिर अपना दिव्य
तेज आपने श्रीईश्वर पुरी जी में स्थानान्तरित कर दिया। भगवान की अद्भुत लीला वे ही
जानें । ब्रज लीला में उन्हीं की इच्छा से योगमाया देवी ने उनका तेज श्रीमती देवकी के गर्भ से
श्रीमती रोहिणी के गर्भ में स्थानान्तरित किया था।
श्रीविश्वरूप जी ने श्रीईश्वर पुरी जी से कहा, 'इसे संभाल कर रखें। जब आप नित्यानन्द को दीक्षा देंगे तो उनमें इसे (तेज को) स्थापित कर दीजियेगा।' ऐसा कह कर श्रीविश्वरुप अदृश्य हो गये।
श्रीविश्वरूप व श्रीनित्यानन्द जी एक ही हैं।
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