शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

धर्म और अहिंसा


कोई भी धर्म के नाम पर झगड़ा नहीं कर सकता या हम यह कह सकते है कि झगड़ा हो ही नहीं सकता ।

धर्म क्या है ?

धर्म मात्र किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं अपितु सारे समाज , देश और सारी दुनिया के लिए है । 

धर्म के बहुत सारे अंग है ,जैसे ब्रह्मचर्य , अगर कोई अपने इस मनोभाव या इच्छा को नियंत्रित करता है  तो क्या वह अपने परिवार, समाज, देश का कोई नुक्सान करेगा ? 

धर्म का एक अंग सत्य भी है । सत्य बोलने से क्या परिवार, समाज, देश को कोई क्षति होगी । अधर्म के द्वारा तुम पूरी दुनिया को परेशान कर रहे हो । सारे घोटाले अधर्म के कारण है । अगर कोई झूठ बोलता है तो यह अधर्म है । अधर्म अशांति लाता है, अधर्म लोगो को गुमराह करता है । केवल कर्मकाण्ड पूजा ही धर्म नहीं है ।

तपस्या अर्थात इन्द्रिय तर्पण की इच्छा को निर्लिप्त करने से संसार में किस को कष्ट पहुंचेगा ? हम सब इन्द्रियों को संतुष्ट करने के लिए पाप करते है, अगर कोई इन्द्रियों को नियंत्रित करने के लिए कुछ करता है तो वह किस को नुक्सान पहुंचाएगा?
 दान - अगर कोई कमाता है और वह अपने कमाए धन को अपने परिवार के सदस्य या अन्य किसी को दिए बिना सारा स्वयं के लिए प्रयोग करता है तो यह अधर्म है । हर व्यक्ति माता  - पिता से सहायता लेता है ,क्या
उसका पालन पोषण माता पिता के बिना ही हो गया ? क्या कोई भी अपने माता पिता के संरक्षण के बिना अपना अस्तित्व कायम रख सकता है  ?  हर कोई उनका ऋणी है । माता पिता का अपने संतान के धन पर अधिकार होता है । अगर कोई भी अपने कमाए धन को उनको नहीं देता तो यह अधर्म  है । हर अधर्म की प्रतिक्रिया होती है । 

हर प्राणी दूसरे मनुष्य तथा देवी- देवताओं की मदद लेता है, वे हमें हवा, पानी, अनाज देते है, प्रतिफल के रूप में हमें भी कुछ देना होता है, अगर हम ऐसे नहीं करते तो यह अधर्म है । हर किसी को दान करना चाहिए , अगर कोई इस का अभ्यास करता है तो क्या वह किसी को नुक्सान पहुंचाता है ? परन्तु अगर कोई ऐसा न करके सारा धन अपनी इन्द्रिय संतुष्टि की लिए लगाता है तो यह अधर्म है। इस तरह वो समाज में कई प्रकार की समस्याओं को पैदा करता है ।

नियम  - नियम का अर्थ है  नियंत्रित और नियमित जीवन व्यतीत करना । अगर कोई शरीर के नियमों का सही तरह से पालन नहीं करता तो वह रोगग्रस्त हो जाएगा , उसे और भी कई समस्याएं हो सकती है , इसलिए मन, समाज, संस्था का नियंत्रित और अनुशासित  होना बहुत आवश्यक है । यह धर्म है । अपने शरीर ,मन ,बुद्धि की उन्नति के लिए किसी अनुभवी अधिकारी के निर्देशानुसार नियमों का पालन करना चाहिए | क्या ऐसी नियमतता से किसी को नुक्सान पहुंचेगा ?

क्षमा - कोई भी परिवार ,समाज बिना क्षमा के नहीं रह सकता । किसी से अनजाने में या जान-बूझ कर कोई गलती हो सकती है, ऐसे में अगर क्षमा नहीं होगी तो वह अपने आप को कैसे सुधारेगा?  गलती किसी से भी हो सकती है । अगर कोई दूसरा उसको क्षमा नहीं करेगा तो क्या   होगा ? इसलिए सहनशीलता होनी बहुत जरूरी है । हमें सहनशीलता का अभ्यास करना चाहिए । क्या सहनशीलता या सहिष्णुता किसी को नुक्सान पहुंचा सकती है ? 

अहिंसा ही धर्म है । अगर कोई किसी को कष्ट पहुंचाता है तो उसकी प्रतिक्रिया  अवश्य होगी । हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है । हिंसा की भी प्रतिक्रिया होती हैं । हामारी, भूकंप, आपदा इसी प्रतिक्रिया के  फल स्वरूप है  । किसी भी गंभीर अपराध की प्रतिक्रिया अवश्य होगी ।

मन की शांति - अशांत दिमाग से लिया गया कोई भी निर्णय उचित नहीं हो सकता । लोग हमेशा सांसारिक वस्तुओं की चिंता करते है और परेशान रहते है । जब उस शांतिस्वरूप, आनंदमय भगवान् की आराधना करेगें तो हमारा मन शांत और निर्मल हो जाएगा ,और शांत दिमाग से
उचित निर्णय लिया जा सकता है ।

क्या धर्म के यह सब अंग किसी को नुक्सान पहुंचा सकते है ?

यह सब सर्वोच्च धर्म के स्तर है । सर्वोच्च धर्म सब को प्रेम करना है । यह ज्ञान वास्तव में दार्शनिक ज्ञान है और यह उनसे प्राप्त किया जा सकता है जिनको इसकी वास्तविक अनुभूति हो ।                                                                                                                                                                                                                                                                      
द्वारा- श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज ।       

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