शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

आज, श्रीराधाष्टमी पर विशेष

अनेक लोगों में ऐसी धारणा है कि श्रीमती राधा रानी की बात शास्त्रों में नहीं है किन्तु श्रीकृष्ण द्वैपायन वेदव्यास मुनि जी द्वारा लिखित ब्रह्मवैवर्त्त पुराण एवं पद्मपुराण में राधारानी जी का स्पष्ट रूप से उल्लेख है। इसके अतिरिक्त देवी भागवत, राधातन्त्र, राधावराह कल्प में राधारानी का विवरण पाया जाता है। शुद्ध भागवत अर्थात शुद्ध भक्त लोग कहते हैं कि सब शास्त्रों के सार श्रीमद्भागवत शास्त्र में राधारानी के विषय में सीधा न कहने पर भी इशारा किया गया है।
श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी, श्रीमद्भागवत के श्लोक (10/30/28) का अर्थ इस प्रकार से करते हैं ,'हे सहचरी, हमें परित्याग कर कृष्ण जिसे एकान्त में ले गये हैं, उसने ईश्वर श्रीहरि की अवश्य ही अधिक आराधना की है। गूढ़ अर्थ ये है कि श्रीकृष्ण जिन्हें ले गये हैं वे कृष्ण-कान्ताओं की शिरोमणि हैं और उनका नाम राधा है।'
बृहद्गौतमीय तन्त्र में राधा रानी जी का नाम स्पष्ट रूप से उल्लेखित है।
'गोलोक में रास मण्डल श्रीकृष्ण के बायीं ओर से आविर्भूत होकर आप श्रीकृष्ण की ओर धावमान हुईं थीं (अर्थात दौड़ी थीं), इसीलिये आपका नाम राधा हुआ।                                     


राधारानी से लाखों-करोड़ों गोपियां प्रकट हुईं थीं।  
भगवान के आदेश के अनुसार आप उनकी लीला पुष्टि के लिये यहाँ अवतरित हुईं।
एक बार वृषभानु राज कालिन्दी के तट पर सर्वोत्तम कन्या की प्राप्ति के लिये योगमाया की आराधना में निमग्न थे। योगमाया उनकी आराधना से संतुष्ट हो गयीं व उन्होंने श्रीवृषभानु जी कि एक तजोमय अण्डा देते हुये कहा, 'तुम्हारी पत्नी के प्रेम में मैं वशीभूत हूँ उसको ये अण्डा देना। तुम्हें कन्या रत्न प्राप्त होगा।'                                                         
वृषभानु ने अण्डे को ले जाकर जैसे ही अपनी पत्नी (श्रीमती कीर्तिदा देवी) के पास रखा, वह अण्डा फूटा और वहीं से राधा रानी का आविर्भाव हुया। किसी अन्य मत के अनुसार यमुना के तट पर वृषभानु राज की तपस्या से राधा रानी यमुना में अपूर्व सौ दलों वाले पद्म में स्वयं प्रकटित हुईं थीं, वृषभानु राज अति आश्चर्य रूपलावण्यमयी कन्या को प्राप्त कर परमानन्दित हुये किन्तु देखा कि कन्या की दोनों आँखें बंद हैं । हर समय कन्या के चक्षु बन्द देख वे अत्यन्त दुःखी मन से समय
काटने लगे। एक दिन बन्धु नन्दमहाराज अपनी पत्नी यशोदा देवी, शिशु गोपाल को लेकर वृषभानु राजा के पास आये तो वृषभानु राजा नन्दमहाराज के सामने अपना दुःख निवेदन कर रहे थे कि उसी समय                                 
एक आश्चर्यजनक घटना घटी। शिशु गोपाल रेंगता-रेंगता राधारानी के पास गया, उसके स्पर्श करते ही राधारानी के दोनों नेत्र खुल गये। राधारानी का ये संकल्प था कि वे आँखें खोलते ही पहले कृष्ण को देखेंगी। इसीलिये श्रीकृष्ण के आने के साथ-साथ ही राधा-रानी ने नेत्र खोल दिये।                                                         

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