बुधवार, 16 जनवरी 2013

श्रील भक्ति प्रमोद पुरी गोस्वामी महाराज


श्रील भक्ति सिद्धांत ठाकुर जी ने बहुत कम समय में सारे विश्व में  शुद्ध भक्ति  का बहुत प्रचार किया । इसी दौरान उन्होंने समाज के बहुत से विशिष्ट  व्यक्तियों  और  विद्वानों को भी अपना शिष्य बनाया । श्रील भक्ति प्रमोद  पुरी गोस्वामी महाराज जी इनके नजदीकी शिष्यों मे से एक थे । ब्रह्मचारी  अवस्था में इनका नाम प्रणवानंद दास था । यह बृहद मृदंग सेवा अर्थात ग्रन्थ प्रकाशन सेवा में बहुत दक्ष थे । ? प्रभुपाद जी के निर्देशानुसार अनुसार इन्होंने साप्ताहिक गौड़ीय पत्रिका तथा  नित्य प्रति प्रकाशित होने वाला नदिया प्रकाश नामक समाचार पत्र , और भी कई ग्रन्थ जो उस समय मठ से प्रकाशित हुये थे उनका संपादन किया । वे धार्मिक गथों का संपादन, प्रूफ संशोधन, तथा उन्हें छपवाने के कार्य को बहुत ही दक्षता तथा परिश्रम के साथ करते थे । उनको संपादक की पदवी उनकी योग्यता के कारण ही दी गई थी । उनका जन्म उच्च कुलीन ब्राहमण परिवार में हुआ था । इतनी अतुलनीय  विद्वता  होने के बावजूद भी यह  अपने पुराने तथा नए शिष्यों के साथ बहुत विन्रमता पूर्वक व्यवहार करते थे । वेदों के अनुसार श्री विग्रह पूजा , श्रीविग्रहों की प्रतिष्ठा, मंदिर निर्माण  इत्यादि कार्यों में  इनकी दक्षता असाधारण थी । इनकी ब्रह्मचारी अवस्था मे मैं  इनको नहीं मिल पाया । इनके संन्यास ग्रहण के पश्चात् ही मुझे इनका दर्शन हुआ । हमारा परम सौभाग्य है कि हमें इनके मुखारविन्द से दिव्य हरि कथा सुनने को मिली । धार्मिक उत्सवों तथा धार्मिक सभा में  आप धारा प्रवाह प्रवचन तथा मधुर कीर्तन करते थे । वृद्ध अवस्था मे  जिस तरह से वे हरि कथा तथा नियमपूर्वक श्री विग्रह पूजा करते थे हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है ।    
हमारे गुरु महाराज ( परमाराध्य श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी) इनको अपने बड़े गुरुभाई की तरह बहुत सम्मान देते थे । इनका भी श्री चैतनय गौड़ीय मठ से बहुत घनिष्ट संबंध था । श्री चैतन्य गौड़ीय मठ के हरेक कर्यक्रम में आप बहुत सहयोग देते थे । श्री पुरुषोत्तम धाम में श्री जगन्नाथ रथ यात्रा के समय, श्री जगन्नाथ मंदिर से गुण्डीचा मंदिर तक श्री चैतन्य चरितामृत नामक ग्रन्थ से जगन्नाथ रथ यात्रा के प्रसंग को जगन्नाथ जी के रथ के आगे उनको उच्च स्वर से पाठ करते देख कर मैं आश्चर्य चकित रह गया था । 85 वर्ष की अवस्था में भी अपने शिष्यों के कंधों पर हाथ रख कर व्रज मण्डल की परिक्रमा करना निश्चित रूप से अतुलनीय था । जब मैं 1947 सन में गौड़ीय संस्था से जुड़ा तो मुझे प्रचार के लिये इनके साथ पश्चिम बंगाल में कई जगह जाने का मौका मिला । इनकी प्रेरणाप्रद कथा तथा मधुर कीर्तन सुनकर मैं बहुत आकर्षित हो जाता था ।  श्रील गुरु महाराज की प्रार्थना पर इन्होंने श्री चैतन्य गौड़ीय मठ से प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'चैतन्य वाणी'  का संपादक बनना स्वीकार किया । श्रील गुरु महाराज के अप्रकट लीला के पश्चात् ह्स्र प्रकार की धार्मिक जिज्ञासा के लिए हम इनके ऊपर आश्रित थे । यद्यपि हम  इनकी दिव्य स्थिति को समझने में असमर्थ थे तब भी बाहरी रूप से उनकी विद्वता और नम्रता को देखकर अचंभित होते रहते थे । श्रील प्रभुपाद जी की धारा भक्त वृन्द उनको आज भी अपना आदर्श मानते है ।
 श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज द्वारा,                                
 

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