राजा
रघुनन्दन जी का बचपन से श्रीश्री राधा-कृष्ण जी की सेवा के प्रति बहुत अनुराग था ।
बड़े होकर आपकी राजकीय कार्यो में कम, भगवान की सेवा में ज्यादा रूचि थी । वे
ज्यादा समय श्रीविग्रहों की सेवा में ही लगे रहते थे । आपके पिता श्रीकमलेश्वरी
प्रसाद सिंह जी भी भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे । वह अपने पुत्र की भावनाओं को
समझते थे । आपकी प्रसन्नता के लिये आपके पिताजी ने सुन्दर मंदिर बनवाया जहाँ पर
श्रीश्रीराधा-कृष्ण जी के विग्रहों के साथ - साथ श्री राधा जी के चरणों से चिन्हित
एक गोवर्धन शिला विराजित थी परन्तु आपके बड़े भाई राजा शिवानन्द की मृत्यु के
कारण राजकीय कार्यो की सारी जिम्मेवारी आपके ऊपर आ गई । अपने राज्य मुंगेर के
राजकीय कार्यो के लिए आपको बार बार दिल्ली आना पड़ता था । इसके कारण कई बार
आपको श्रीविग्रहों की सेवा से वंचित रहना पड़ता था ।

घर
के बुजुर्गों तथा अपने गुरुदेव श्रील वामन दास जी महाराज से श्रीवृन्दावन धाम की
महिमा सुनने के बाद आप एक बार वृन्दावन आये। उस समय जयपुर मंदिर और गोविन्द जी के
मंदिर के बीच मे सारा जंगल ही जंगल था। वहां पर राधा विलास और माधव विलास नाम का
एक ऐसा स्थान है जहाँ भगवान श्री कृष्ण अपने गोप मित्रो के साथ श्रीमती राधा रानी
जी को मिलने आते थे। उधर राधाजी भी अपनी सखियों के साथ यहाँ आथीं थीं । ये एक ऐसी
लीलास्थली है यहाँ श्री राधा जी एवं श्रीकृष्ण जी एक दूसरे का दूर-दूर से दर्शन तो
करते थे परन्तु बातचीत नहीं करते थे । इसी पवित्र स्थान पर राजा रघुनन्दन ने जमीन
लेकर मुँगेर राजा के नाम पर एक विशाल मंदिर की स्थापना की और वहां पर श्रीश्री राधा
मोहन जी और उनकी चार सखियों के विग्रहों की स्थपाना की ।शुरू शुरू मे लोगों ने राजा
को मूर्ख समझा क्योंकि वह जंगल के बीचोंबीच मंदिर बना रहे थे परन्तु धीरे धीरे
लोगों उस स्थान का महत्व मालूम हुआ। लोगों को वृन्दावन की महिमा से अवगत कराने के
लिये राजा रघुनन्दन मुँगेर से हाथरस की ओर आने वाली ट्रेन में भक्तों के लिये
कुछ कोच बुक कराते थे ( उस समय मथुरा स्टेशन नहीं था ) जो विशेषकर वृन्दावन भक्तों
को लेकर आती थी। भक्त लोग बड़ी श्रद्धा के साथ वृन्दावन के व इस मन्दिर के दर्शन
करते थे। आज भी विश्व के विभिन्न देशों से लोग, मुंगेर मंदिर के दर्शनों के लिए
आते हैं और साधू महाराज जी के दर्शन करते हैं जो अपने दादा राजा रघुनन्दन जी के
द्वारा शुरू की गई सेवा को जारी रखे हुए हैं ।
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