सोमवार, 16 जुलाई 2012

वैष्णवों का स्मरण


वैष्णवों  की आविर्भाव और तिरोभाव तिथि में उनका स्मरण करना , उनकी कृपा प्रार्थना करना तथा उनकी गुण गाथा कीर्तन के लिए यत्न करना , भजन का विशेष अंग  है |  

राजस्थान के जयपुर
निवासी ब्राह्मण श्रीचन्द्र शर्मा जी के घर मे भगवान श्रीकृष्ण के ' श्री रसिक राय ' नामक श्री विग्रह विराजित थे । सेवा अपराध करने के कारण ब्राह्मण श्री चन्द्र शर्मा निर्वश हो गया था | श्री जगन्नाथ देव जी ने उसे स्वप्न में कहा कि तुम विग्रह की सेवा पुरुषोतम धाम में श्री गंगामाता जी को दे दो तो तुम्हारे सारे अपराध और भय दूर हो जायेंगें । ब्राह्मण, श्री जगन्नाथ देव जी की आज्ञा के अनुसार राधारानी तथा श्री रसिक राय विग्रह को लेकर श्रीक्षेत्र में गंगा माता जी के पास पहुँचे ।               
 
 
उन्होंने गंगा माता गोस्वामिनी जी को श्री विग्रह की सेवा के लिए प्रार्थना की । परन्तु  गंगा माता जी ने लेने से मना कर दिया क्योंकि उनके द्वारा विग्रहों की राजसेवा चलानी संभव नहीं थी । ब्राह्मण द्वारा तुलसी के बगीचे में ही विग्रह छोड़ कर चले जाने पर श्री रसिक राय जी ने स्वयं ही अपनी सेवा के लिए गंगा माता जी को स्वप्न मे आदेश दे दिया । स्वप्न में आदेश मिलने पर गंगामाताजी ने उल्लास के साथ श्री विग्रहों का प्रकट उत्सव मनाया ।
 
श्री  गंगामाता मठ मे पांच युगल मूर्तियां विराजित है । श्रीश्रीराधारासिकराय ,श्रीश्रीराधाश्यामसुंदर जी , श्रीश्रीराधामदनमोहन, श्रीश्री राधाविनोद और श्री श्रीराधा रमणजी ।  इनके अतिरिक्त सार्वभौम भट्टाचार्य जी द्वारा सेवित श्री दामोदर शालिग्राम , नृत्य में रत श्रीगौरमूर्ति और  लड्डूगोपाल विग्रह भी वहां सिंहासन पर सेवित हो रहे हैं । 
 
  श्री  गंगामाता मठ के इतिहास से जाना जाता है कि गंगामाता जी सन 1601 ई० के ज्येष्ट मास की शुक्ल तिथि को आविर्भूत हुईं थीं तथा सन 1721 ई० में नित्यलीला में प्रवेश कर गयी ।
 
पुरी में हावेली मठ , गोपाल मठ और कटक ज़िले में टांगी नामक स्थान पर श्री गोपाल मठ इन्हीं के मठ की शाखाएं है । हरिभक्त चाहे किसी भी जाति , किसी भी वर्ण और किसी भी कुल में आविर्भूत हो जाएँ तब भी वे सर्वोत्तम और सब के पूजनीय ही होते हैं । इसका एक उदाहरण गंगामाता गोस्वामिनी जी हैं ।
 
द्वारा: श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज
 

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