
इस सम्बन्ध में एक अन्य महत्वपूर्ण बात का उल्लेख हुआ है -
अनिन्दया - हमें दूसरे कि धर्म प्रणाली की आलोचना नहीं करनी चाहिए | विभिन्न
प्रकार की धर्म प्रणालियाँ विभिन्न गुणों के अंतर्गत कार्यशील हैं । जो रज: तथा तम:
गुणों के अंतर्गत कार्यशील हैं , वे सत्व गुण पद्वति पर चलने वाले धर्म के समान
परिपूर्ण नहीं हो सकते । भगवदगीता में सभी वस्तुओं को तीन वर्गों में रखा गया है,
अत: धर्मों की भी उसी तरह श्रेणियाँ की गई हैं । जब लोग रज: तथा तम: गुणों के अधीन
होगें तो उनकी धर्म पद्धति भी उसी तरह की होगी । भक्त इन पद्धतियों की आलोचना न करके भक्तों को अपने सिद्धांतों में दृढ़
रहने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे वे क्रमश: सात्विक धर्म के पद को प्रप्त
कर सकें । केवल आलोचना करते रहने से भक्त का मन विचलित हो जाता है । इस तरह भक्त को
सहनशील होना चाहिए तथा क्षुब्ध न होना सीखना चाहिए |
(श्रीमदभाग्वाताम् तात्पर्य ४.२२.२४ )
-- (श्रील स्वामी महाराज)
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Conversation
with Father Emmanuel and Cardinal Danielou |
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