बीरबल
अकबर बादशाह का प्रिय मंत्री था | साधारण सा दिखने
वाला बीरबल असाधारण बुद्धि का स्वामी था
। उन दोनों के बीच में अक्सर बड़ी शानदार बातें हुआ करती थीं | अकबर बादशाह को
बीरबल के साथ बात करते हुए वक्त कैसे बीत जाता था पता ही नहीं चलता था
।

बीरबल उतर देता है -" महाराज इस सृष्टि के निर्माता जो
सबके परमपिता हैं, अपने बच्चों की रक्षा के
लिए स्वयं इस धरती पर आते हैं, इसमें बेतुकी बात क्या है
|
"अकबर बादशाह कहते हैं - " परमपिता का अपने दिव्य
शरीर को छोड़ कर इस भौतिक शरीर में आने की धारणा निश्चित रूप से
बेतुकी है |"
(उस वक्त बीरबल कोई उतर नहीं देता
)
कुछ दिनों
के पश्चात् बादशाह अकबर और बीरबल यमुना के किनारे टहल रहे थे | उसी समय नदी में एक
राजसी नौका जा रही थी । बादशाह का छोटा पुत्र
नौकरानी के घुटनों में बैठ कर नौका की
सवारी का आनंद ले रहा था । जब नौकरानी ने
बीरबल और बादशाह को देखा तो आश्चर्यचकित हो अकस्मात खड़ी हुई, जिससे राजा का पुत्र
नदी में गिर गया । बादशाह अपने पुत्र को नदी में गिरते देख घबरा गये और उसे बचाने
के लिए कूद पड़े । जैसे ही वो बच्चे के पास पहुँचे तो उन्होंने देखा कि वो मात्र एक
खिलौना है । तब तक बीरबल भी तैरता हुआ नदी के मध्य पहुँच गया और बादशाह से कहने लगा
- 'सांसारिक पिता होने के बावजूद भी आप अपने राजसी वेशभूषा और स्थिति की चिंता किये
बिना अपने पुत्र को बचाने के लिये नदी में कूद पड़े और वो परमपिता परमात्मा जिसमें
करोड़ों गुणा वात्सल्य है ,क्या वे अपने बच्चों को बचाने के लिए इस धरती पर नहीं आ सकते ?'
बादशाह निरुतर हो
गया|
तात्पर्य :
कुछ लोगों को संदेह होता कि जब भगवान के भक्त कष्ट में होते हैं
तो क्या वे उन्हें वे स्वयं बचाने आते हैं या यह
बात कल्पना मात्र है ?
परमपूज्यपाद श्रील भक्तिवेदान्त
स्वामी महाराज कहते हैं कि भगवान इस जगत के प्राणियों के प्रति बहुत दयावान हैं
क्योंकि सभी प्राणी उनकी संतान हैं ।
श्रीकृष्ण भगवद्गीता में कहते
हैं,' सर्वयोनिषु …………………बीजप्रद: पिता ' (14/4) ।
अर्थात भगवान श्रीकृष्ण कहते
हैं - 'यह ठीक है कि इस दुनिया में सभी प्राणी अपने कर्मों के अनुसार दुख-सुख पा
रहे हैं । मैं सब का पिता हूँ और सभी जीवों को उनकी
वास्तविक स्थिति का ज्ञान करवाने के लिए स्वयं इस धरती पर आता हूँ ।'
अलग - अलग युग में भगवान अपने अलग अलग स्वरूपों में प्रकट होते हैं
।
चूँकि भगवान कई रूपों में अवतीर्ण होते हैं इसलिए कोई यह नहीं कह
सकता कि भगवान नहीं हैं । भगवान तो हैं, और हर युग में अपने भक्तों को दर्शन देने व
उनकी रक्षा करने के लिये अवतरित भी होते हैं। हमें तो बस उनका अनुभव करना होगा।
महान वैष्णव-भक्त कुलशेखर जी अपनी प्रार्थना श्री मुकुंद माला
स्तोत्रम में कहते हैं -
'हे मेरे मूढ़ मन ! यमलोक में मिलने वाली यातनाओं की चिंता करते
हुए भयभीत मत हो । यह सब जो पाप हैं, हमारे ऊपर प्रभाव डालनेमें समर्थ नहीं हैं , क्योंकि हमारे स्वामी भगवान श्रीहरि ,
हमारे रक्षक हैं । अतएव आलस्य को त्याग कर, भक्ति के द्वारा भगवान श्री नारायण का
ध्यान करते रहो , जो कि बड़ा आसान है |'
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