
अगले दिन प्रात: फिर घंटी बजी, उसने देखा, वही बूढ़ा
हाथ फैलाये खड़ा है। हल्का गुस्सा आया उसे पर कुछ बोला नहीं, व भीतर जाकर बीते कल की
बासी रोटी उसने उस बूढ़े को लाकर दे दी व कहा, 'बाबा, और भी घर हैं।' बूढ़े ने जैसे
कुछ सुना नहीं, बस उसकी आँखों में चमक थी रोटी देखकर । वह चला गया, रोटी
लेकर।
अगले दिन फिर घंटी बजी सुबह। दरवाजा खुलते ही बूढ़ा
फूट पड़ा, 'बाबूजी कल से भूखा हूँ । एक आपकी दी हुई रोटी ही खाई है बस। बड़ी मेहरबानी
होगी……………'। बीच में वह गुस्से में बिफरा, 'तुम्हें पहले दिन रोटी देकर गलती की।
भागो यहाँ से, दोबारा नजर आये तो पीट दूँगा।' वह बूढ़ा तब तक उसके चरणों एस झुक
चुका था व रो रहा था। वह व्यक्ति गुस्से में बड़बड़ा रहा था और किसी प्रकार बूढ़े को
अपने से दूर करने की चेष्टा कर रहा था।
तभी उस व्यक्ति के कोई दूर के सम्बन्धी आ गये व सारी
घटना को देखने लगे। उन्होंने ही बीच-बचाव की कोशिश की पर उस व्यक्ति ने यह कह कर
टोक दिया कि आपको नहीं पता इस बुडढे के बारे में। मुझे ही इसे एक-दो हाथ लगाने
पड़ेंगे । वह उस वृद्ध भिखारी को मारने ही लगा था कि उस रिश्तेदार ने उसका हाथ रोक
दिया व उस वृद्ध भिखारी को गौर से देखने लगे। वह रिश्तेदार बोले, 'अरे भाई ! हो ना
हो यह आपके खोये हुये पिताजी हैं।'
वह स्तम्भ रह गया। हाथ तो क्या जुबान ने भी चलना बन्द
कर दिया। उसी वक्त वह उस वृद्ध जिसको वो मारने जा रहा था, के चरणों में गिर पड़ा ।
बड़े प्यार से उन्हें घर के भीतर ले गया व कुर्सी पर बिठाया, पत्नी को बुलाया व
बताया कि यह उसके ससुर हैं व उनके लिये एक कक्ष संवारने के लिये भी कहा। पिताजी ने
आप-बीती सुनाई कि दंगों में कैसे उनका परिवार बिखर गया व उनकी पत्नी व बेटे उनसे
बिछुड़ गये । अब वह पिताजी कि पुरानी तस्वीर से उस वृद्ध को मिलाने लगा। रिश्तेदार
की सहमति व अपनी तसल्ली हो जाने पर वह पिता के चरणों में बैठकर उनके चरण दबाने लगा।
यह वही व्यक्ति है जिसको कुछ क्षण पहले वह पीटने जा रहा था, और अब उसकी आवभगत कर
रहा है। ऐसा क्या हुया जो कि सारी स्थ्ति में बदलाव आ गया। यह बदलाव होने का एक ही
कारण था, वह था 'सम्बन्ध ज्ञान'। अभी तक तो वह वृद्ध उसके लिये एक भिखारी था,
क्योंकि सम्बन्ध ज्ञान नहीं था। जैसे ही सम्बन्ध का ज्ञान हुया वही वृद्ध अब पिता
हो गया व उसकी सेवा-प्रचेष्टा होने लगी।
इसी प्रकार मनुष्य भी नित्य सम्बन्ध के ज्ञान को भुला
बैठा है। वह यह भूल गया है कि उसके असली माता-पिता कौन हैं ? वह यहाँ पर किस कारण
से आया है ? उसे कहाँ जाना है? व उसका वास्तविक स्वरूप क्या है? इन प्रश्नों के
उत्तर के ज्ञान के अभाव से मानव निरन्तर सुख-दुख की छाया में जी रहा है व उनको झेल
रहा है।

जब बालक जन्म लेता है, तब उसको पिता व अन्यों से
सम्बन्ध क ज्ञान माँ कराती है। माँ ही उसे बताती है कि उसका पिता कौन है। एकमात्र
माता के कहने पर वह इस सम्बन्ध ज्ञान को मानता है कि ये मेरे पिता हैं। वह जीवन भर
इसी सम्बन्ध ज्ञान पर स्थित रहता है। इसी प्रकार वेद श्रुति जो हमारी माता कहे जाते
हैं, अगर कहते हैं कि भगवान नन्द-नन्दन श्रीकृष्ण ही हमारे पिता हैं तो बड़ी असमंजस
की बात है कि हम यह मानते ही नहीं हैं।
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