शुक्रवार, 18 मई 2012

ईसा मसीह

द्वारा: श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती प्रभुपाद

प्रश्न: यदि ईसा मसीह जगत गुरु थे और उनके द्वारा दिए गए उपदेश हमें मुक्ति प्रदान करने में सक्षम हैं तो हमारे जीवन में आध्यात्मिक गुरु की क्या आवश्यकता है ?

श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती प्रभुपाद: हम जगत गुरु भगवान और दीक्षा गुरु दोनों को ही स्वीकार करते हैं | यदि हम केवल जगत गुरु को स्वीकार करेंगे तो हमें बहुत से अनर्थों का सामना करना पढ़ सकता है | यदि आज हम ईसा मसीह को जगत गुरु मानते हुए उनके उपदेशों का पालन करना चाहते हैं और यह सोचते हैं की हमें दीक्षा गुरु की कोई आवश्यकता नहीं है तो हमें सम्पूर्ण रूप से जीसस के आदेश पालन करने में अनेकों संदेह होंगे | भगवान गुरु-परम्परा द्वारा ही उस  परम सत्य को हमें प्रदान करते हैं |

जिस प्रकार गंगा जी का दूर हिमालय से प्रादुर्भाव हुआ पर फिर भी मैं नवद्वीप में गंगा जी के किनारे पर बैठकर उनके पवित्र जल को स्पर्श कर सकता हूँ उसी प्रकार आध्यात्मिक गुरु शुद्ध भक्ति रुपी गंगा जो भगवान के चरणकमलों से उदित हुई है उसे कृपा कर हमें प्रदान करते हैं | क्योंकि मैं तो साधारण, असमर्थ और दीन व्यक्ति हूँ जो हिमालय पर चढ़कर गंगा जी का स्पर्श करने में सक्षम नहीं है उसी प्रकार यदि हिमालय से बहती गंगा जी का  रास्ते में अवरोध हों तो यह भी संभव है की मुझे गंगाजल की जगह दूषित जल भी ग्रहण करना पढ़ सकता है | 

यदि २००० वर्ष पूर्व ईसा मसीह द्वारा दी गयी शिक्षाएं हमें उनके परिजनों के माध्यम से न मिलती और हम विभिन्न पुस्तकों, ग्रंथों आदि में उन्हें छाँटते तो संभवत: हम एक बड़ी भूल कर बैठते और इसाई धर्म के नाम पर उस सत्य की जगह कुछ और ही प्राप्त करते | ऐसा भी हों सकता था की हम ईसा द्वारा दिए गए वास्तविक सिद्धांत की जगह कुछ उल्टा ही ग्रहण कर बैठते |

दीक्षा गुरु व् आध्यात्मिक गुरु भी जगत गुरु ही हैं क्योंकि वह मूल गुरु भगवान का प्रकाश हैं, बद्ध जीवों पर अहैतुकी कृपा करने हेतु वह भगवान की वाणी को गुरु-परम्परा के माध्यम से शिष्य तक पहुंचाते हैं | वह कभी भी शिष्य से कपटता नहीं करते, न ही शिष्य की झूठी प्रशंसा करते हैं और न ही उनकी भावना शिष्य का पैसा हरण करने की होती है | वह तो केवल सर्वशक्तिमान भगवान के प्रिय पार्षद होते हैं |

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