द्वारा: स्वामी त्रिपुरारी
भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु स्वयं भगवान हैं
जो कृष्ण लीला के अभिप्राय की शिक्षा प्रदान करने के लिए अवतरित हुए और पूर्ण रूप
से संन्यास धर्म का पालन करके उन्होंने श्री राम की तरह मर्यादा का भी पालन किया |
महाप्रभु की लीला में भी कुछ राम-भक्तों का आविर्भाव हुआ | महाप्रभु तो स्वयं कृष्ण
हैं जो भक्त भाव अंगीकार करके इस धरातल पर अवतीर्ण हुए और उन्हीं की लीला पुष्ठी के
लिए अन्य-अन्य लीलाओं से उनके नित्य पार्षद भी अवतीर्ण हुए | नवद्वीप में महाप्रभु
ने मुरारी गुप्त को राम रूप में अपने स्वरूप के दर्शन करवाए, इस प्रकार महाप्रभु ने
अपने नित्य पार्षदों को उनके भावानुसार विभिन्न रूपों में दर्शन दिए |
श्री रूप और सनातन गोस्वामी जी का एक भाई था
जिसका नाम वल्लभ अथवा अनुपम था। जिस दिन उन्होंने निर्णय लिया कि हम अपना जीवन श्री
राधा-गोविन्द की सेवा में व्यतीत करेंगे उस रात अनुपम को नींद न आई क्योंकि उसका
श्री राम के प्रति अधिक प्रेम था और अगले ही दिन उसने अपने दोनों भाईओं के समक्ष
अपनी दुविधा प्रकट की। जब महाप्रभु जी को इस बात का पता चला तो उन्होंने कहा, "धन्य
है ऐसा भक्त जो अपने आराध्य देव की सेवा को नहीं छोड़ता और धन्य हैं वे भगवान जो
कभी भी अपने भक्त को नहीं छोड़ते |" अनुपम की निष्ठा को देख महाप्रभु बहुत प्रसन्न
हुए |
एक समय जब महाप्रभु जी दक्षिण भारत की ओर जा
रहे थे तो वह एक ब्राह्मण से मिले जिसका नाम रामदास विप्र था | एक दिन रामदास विप्र
ने महाप्रभु जी को प्रसाद के लिए निमंत्रण दिया | महाप्रभु कुछ समय प्रसाद की
प्रतीक्षा करते हुए उससे पूछने लगे कि प्रसाद को कितना समय है तो उस ब्राह्मण ने
उत्तर दिया, "लक्ष्मण अभी फल-फूल, मूल इत्यादि एकत्रित करने गये हैं, उनके आते ही
प्रसाद की व्यवस्था होगी" - महाप्रभु जी विप्र को राम लीला में तल्लीन देख रहे थे,
कुछ समय बीत गया किन्तु फिर भी प्रसाद की व्यवस्था न हुई और महाप्रभु के दोबारा
पूछने पर रामदास बोला, "मैं कैसे रसोई करूँ ? रावण ने सीता देवी का हरण कर लिया है
! मुझे सीता देवी को वापिस लाने में राम जी की सहायता करनी है ! मैं किस प्रकार
रसोई करूँ व प्रसाद ग्रहण करूँ ?" ऐसा बोलकर विप्र रोने लगा तो महाप्रभु जी उसे
आश्वासित करते हुए बोले, "रावण कभी भी सीता देवी का हरण नहीं कर सकता, ये संभव नहीं
है और रावण केवलमात्र माया सीता अथवा छाया सीता को हरण करके ले गया है |" इस प्रकार
महाप्रभु जी ने रामदास विप्र को सांत्वना प्रदान की । इस बात का प्रमाण उन्होंने
दिया कूर्म पुराण से, जिसके पृष्ट दक्षिण भारत से श्री जगन्नाथ पुरी जाते समय
उन्होंने रामदास विप्र को दिये | महाप्रभु ने कभी भी उसे कृष्ण भक्ति के लिए
परिवर्तित नहीं किया और उसकी निष्कपटता व निष्ठा को देख वे अत्याधिक प्रसन्न हुए
|
भक्तों के रस के अनुसार राम-लीला, कृष्ण लीला
आदि में उनकी सेवा है | महाप्रभु के आचरण को देखते हुए हमें भी बद्ध जीवों को तत्व,
सिद्धांत की वास्तविक शिक्षा देनी चाहिए जिससे वह श्री राम, कृष्ण आदि लीलाओं के
बारे में जान सकें | चैतन्य महाप्रभु जी की शिक्षाओं से हम भगवान के प्रेम को
प्राप्त कर सकते हैं |

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