रविवार, 15 अप्रैल 2012

जय श्रीराम………

…………………… श्रीरामजी का धाम वैकुण्ठ है जहँ पर बहुत सारे विभाग बटे हुए हैं और उनमे से अयोध्या एक विभाग है | वैकुण्ठ धाम से प्यार ही हमारा परम कर्तव्य है और यही असीम प्यार हमे हमारे नैतिक मूल्यों से दृढ़ता   से जोड़े रखता है और हमे कर्तव्यों की सभी सीमाओ  के पार ले जाता है | राम लीला से हमे ज्ञात होता है कि मनुष्यों को आदर्शवान और नीतिज्ञ  होना  चाहिए परन्तु अगर श्री राम विग्रह स्वरुप हमारा आरध्य देव है तो हमें उन्हीं के समान आदर्शवान बनना होगा जिससे हमे राम धाम , अयोध्या में स्थान प्राप्त हो सके | 

                     मर्यादा पुर्षोत्तम श्रीराम के समान आदर्शवादी , सत्यवादी , सहनशील  और नीतिज्ञ लोग चैतन्य लीला में पाये जाते हैं | अपने षढ़भुजा रूप में श्रीचैतन्य महाप्रभु ने स्वयं को एक साथ श्रीराम , श्रीकृष्ण और श्री चैतन्य महाप्रभु रूप में अवतारित किया | श्रीराम अपनी कर्तव्य निष्ठा और ईमानदारी  के कारण मर्यादा पुरषोत्तम के रूप में जाने गए तो श्रीकृष्ण अपने छलिया रूप के लिए प्रसिद्ध है इसलिए श्रीराम की श्रीराम की लीला को समझना आसान है | 
 
द्वारा: श्री त्रिपुरारी महाराज…
 

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