श्री गौड़ीय कंठहार, पंचम रत्न, नित्यानंद तत्व
५.१
अद्वैत-आचार्य, नित्यानंद-दुई अंग |
दुइजन लइया प्रभुर यत किछु रंग ||
श्री नित्यानंद प्रभु और श्री अद्वैत आचार्य - ये दोनों भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु के अंग हैं | इन दोनों को लेकर ही महाप्रभु जी ने समस्त लीलाएं की हैं | (चै.च.आ. ५/१४६)
५.१
संकर्षण: कारणतोयशायी गर्भोदशायी च पयोब्धिशायी |
शेषश्च यस्यांश्कला: स नित्यानन्दाख्यराम: शरणं ममास्तु ||
संकर्षण, कारणाब्धिशायी, गर्भोद्शायी, पयोब्धिशायी और शेषशायी विष्णु जिनके अंश और कला हैं, उन्ही श्रीनित्यानंदराम की मैं शरण ग्रहण करता हूँ | (चै.च.आ.१/७)
५.३
मायातीते व्यापी वैकुंठ्लोके पूर्ण ऐश्वर्य श्री चतुरव्यूहमध्ये |
रूपं यस्योद्भाती संकर्षणाख्यं तं श्रीनित्यानंद-रामं प्रपद्ये ||
मायातीत, सर्वव्यापक, वैकुण्ठ लोक में वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध - इस पूर्ण ऐश्वर्य से युक्त चतुर्व्यूह में जो संकर्षण रूप से विराजमान हैं, उन नित्यानंद स्वरूप राम के श्रीचरणकमलों में मैं शरणागत होता हूँ | (चै.च.आ.१/८)
५.४
माया-भर्ताजांड-संघाश्रयांघ: शेते साक्षात् कारणंभोधिमध्ये |
यस्यैकांश: श्री पुमानादिदेवस्त श्रीनित्यानंद-राम प्रपद्ये ||
मायापति और ब्रह्मांडों के आश्रय स्वरूप कारणाब्धिशायी प्रथम पुरुषावतार जिनके अंग हैं, उन्हीं नित्यानंद राम को मैं प्रणाम करता हूँ | (चै.च.आ. १.९)
५.५
यस्यांशांश: श्रील गर्भोद्शायी यन्नाभ्यब्जं लोकसंघातनालम |
लोकस्रष्टु : सूतिकाधामधातुस्तं श्रीनित्यानंद-राम प्रपद्ये ||
जिनके नाभि पद्म की डंडी लोक सृष्टि करने वाले विधाता अर्थात ब्रह्मा जी का जन्मस्थान है और लोकों का विश्राम स्थल है, वे गर्भोद्शायी जिनके अंश के अंश हैं, उन्ही नित्यानंद-राम को मैं प्रणाम करता हूँ | (चै.च.आ.१/१०)
५.६
यस्यांशान्शांश: परत्माखिलान पोष्टा विष्णुर्भाती दुग्धाब्धिशायी |
क्षौनिभर्त्ता यत्कला सोs प्यनन्तस्तम श्रीनित्यानंद-राम प्रपद्ये ||
जिनके अंशांश के अंश क्षीरोदशायी हैं, जो अखिल परमात्मा, पालनकर्ता विष्णु हैं, पृथ्वीधारी 'अनंत' जिनकी कला हैं, उन्ही श्रीनित्यानंद राम को मैं प्रणाम करता हूँ | (चै.च.आ.१/११)
५.७
बलदेव ही मूल संकर्षण हैं -
श्रीबलराम-गोसाई मूल संकर्षण |
पञ्चरूप धरी करेन कृष्णेर सेवन ||
आपने करेन कृष्ण-लीलार सहाय |
सृष्टि-लीला-कार्य करे धरी चारी काय ||
श्री बलराम मूल संकर्षण हैं - ये पांच रूपों को धारण कर कृष्ण की सेवा करते हैं | वे स्वयं श्रीबलराम जी के रूप में श्रीकृष्ण लीलाओं में सहायक होते हैं और अन्य चार रूपों को धारण कर सृष्टि लीला करते हैं | (चै.च.आ.५/८-९)
५.८
बलराम और नित्यानंद अभिन्न हैं -
प्रेम-प्रचारण आर पाषंड दलन |
दुइ कार्ये अवधूत करेन भ्रमण ||
प्रेम का प्रचार करना और पाखंडियों का दलन करना - ये दो नित्यानंद जी के कार्य हैं | (चै.च.आ.३.१४९)
५.९
नित्यानंद प्रभु जी की महिमा -
जगत माताय नीताइ प्रेमेर माल्साटे |
पलाय दुरंत कलि पड़िया विभ्राटे ||
की सुखे भासिल जीव गोराचांदेर नाटे |
देखिया शुनिया पाषणडीर बुक फाटे ||
प्रेम में विभोर नित्यानंद प्रभु ने जगत को प्रमत्त कर दिया | निताईचन्द्र के इस प्रचंड प्रभाव को देखकर दुर्दांत कलि बड़े संकट में फंस गया | कहाँ जाऊं ? कहाँ भागूं ? ऐसा सोचकर वह बहुत ही घबरा गया | श्री गौरांग और नित्यानंद के नृत्य दर्शन कर सारे जीव आनंद में मत्त हो गये | ऐसा देख-सुनकर पाखंडियों का हृदय फटने लगा | (गीतावली ८ न. कीर्तन)
५.१०
जय जय नित्यानंद, नित्यानंद राम |
जांहार कृपाते पाइनु वृन्दावन धाम ||
जय जय नित्यानंद, जय कृपामय |
जांहा हइते पाइनु रूप-सनातानाश्रय ||
जांहा हइते पाइनु रघुनाथ महाशय |
जांहा हइते पाइनु श्रीस्वरूप आश्रय ||
सनातन-कृपाय पाइनु भक्तिर सिद्धांत |
श्रीरूप-कृपाय पाइनु भक्ति-रस-प्रान्त ||
जय जय नित्यानंद-चरणारविन्द |
जांहा हइते पाइनु श्रीराधागोविंद ||
श्री कृष्णदास कविराज गोस्वामी बड़े उल्लसित होकर दयालु शिरोमणि श्रीनित्यानंद प्रभु का वर्णन कर रहे हैं | श्रीनित्यानंद प्रभु जी की जय हो ! जय हो ! जिनकी कृपा से मुझे वृन्दावन धाम की प्राप्ति हुई, उन श्रीनित्यानंद राम की जय हो, जिनकी कृपा से मुझे रघुनाथ दास गोस्वामी का संग मिला, जिनकी कृपा से मुझे श्रीरूप गोस्वामी का आश्रय मिला, उन नित्यानंद प्रभु की पुन: जय हो | श्रीसनातन गोस्वामी की कृपा से मुझे भक्ति के सिद्धांत प्राप्त हुए, श्रीरूप गोस्वामी की कृपा से मुझे पूर्ण रूप में भक्तिरस की प्राप्ति हुई | अहो ! जिन श्रीनित्यानंद प्रभु के श्रीचरणकमलों की कृपा से श्रीश्री राधागोविंद जी की प्राप्ति हुई, उन श्रीनित्यानंद प्रभु की पुन: पुन: जय हो | (चै.च.आ. ५/२००-२०४)
५ .११
पतितपावन नित्यानंद -
जगाइ माधाइ हइते मुइ से पापिष्ठ |
पुरीषेर कीट हइते मुइ से लघिष्ठ ||
मोर नाम शुने जेइ, ता'र पुन्य क्षय |
मोर नाम लय जेइ, ता'र पाप हय ||
एमन निर्घण मोरे कबा कृपा करे |
एक नित्यानंद बिनु जगत भीतरे ||
प्रेमे मत्त नित्यानंद कृपा अवतार |
उत्तम, मध्यम, किछु न करे विचार ||
जे आगे पड़ये तारे करये निस्तार |
श्रील कृष्णदास कविराज गोस्वामी जी बड़ी दीनता से पतितपावन श्रीनित्यानंद प्रभु की अहैतुकी कृपा का वर्णन कर रहे हैं - मैं जगाइ मधाई से भी अधिक पापी हूँ, टट्टी के कीड़े से भी अधिक घृणित हूँ | जो कोई भूल से भी मेरा नाम सुन लेता हई, उसके सारे पुण्य क्षीण हो जाते हैं और जो भूल से भी मेरा नाम ले लेता है, उसे पाप लग जाता है | ऐसे मुझ घृणित पर एक नित्यानंद प्रभु के बिना इस सारे जगत में दूसरा दयालु कौन है अर्थात कोई नहीं | गौर प्रेम में मतवाले नित्यानंद प्रभु कृपा के अवतार हैं, वे उत्तम, मध्यम और कनिष्ठ आदि कृपापात्रों का विचार नहीं करते, जो कोई भी सामने मिल जाता है, उसका उद्धार कर देते हैं | इसलिए उन्होंने मुझ दुराचारी का भी उद्धार किया | (चै.च.आ. ५/२०५-२०९)
५.१२
अनर्थों की मुक्ति और भक्ति की प्राप्ति के लिए निताई की कृपा ही सम्बल है -
संसारेर पार हइ' भक्तिर सागरे |
जे डुबिबे से भाजुक नीताइ चांदेरे ||
जो इस संसार को पार करके भक्ति रस के सागर में डूबना चाहता है, वे नित्यानंद प्रभु जी का भजन करे | (चै.च.आ.१/७७)
५.१३
नित्यानंद श्रीचैतन्य के प्रचारक हैं -
चैतन्येर आदि-भक्त नित्यानंद-राय |
चैतन्येर यशो वैसे जांहार जिह्वाय ||
अहर्निश चैतन्येर कथा प्रभु कय |
ताँर भजिले से चैतन्ये भक्ति हय ||
श्रीनित्यानंद प्रभु जी श्रीचैतन्य महाप्रभु के प्रथम प्रिय भक्त हैं, जिनकी जिह्वा पर सदा चैतन्य महाप्रभु के यशों का गुणगान स्फुरित होता रहता है | वे नित्य-निरंतर महाप्रभु जी की लीला कथाओं का वर्णन करते रहते हैं | ऐसे श्रीनित्यानंद प्रभु का भजन करने पर ही चैतन्य महाप्रभु के चरणों में भक्ति होती है | (चै.च.आ. ९/२१७-२१८)
५.१४
गौर दासों में पागल निताई -
नित्यानंद-अवधूत सबाते आगल |
चैतन्येर दास्य-प्रेमे हइल पागल ||
अवधूत श्रीनित्यानंद प्रभु श्रीचैतन्य महाप्रभु के भक्तों में अग्रगण्य हैं | वे श्रीगौरहरि के दास्य प्रेम में उन्मत्त रहते हैं | (चै.च.आ.६.४८)
५.१५
अखंड तत्व में खंड वास्तु का ज्ञान अश्रद्धा-पाषंडता मात्र है -
दुइ भाई एक तनु-समान प्रकाश |
नित्यानंद ना मान' , तोमार हबे सर्वनाश ||
एकेते विश्वास, अन्ये ना कर सम्मान |
'अर्द्धकुक्कुटी-न्याय' तोमार प्रमाण ||
श्रीगौर-निताई दोनों भाई एक ही स्वरूप हैं | दोनों में सामान शक्ति का प्रकाश है | श्रीनित्यानंद को नहीं मानने से तुम्हारा सर्वनाश होगा | एक पर तो तुम्हारा विश्वास है परन्तु दुसरे के प्रति सम्मान नहीं है | अतः तुम्हारा यह विश्वास अर्द्धकुक्कुटी-न्याय की भांति है (एक अखंड वास्तु के आधे भाग को स्वीकार करना तथा दुसरे भाग को अस्वीकार करना, यह 'अर्द्धकुक्कुटी-न्याय' कहलाता है) |
५.१६
गौर के बिना निताई और निताई के बिना गौर में विश्वास भक्तिविरोधमात्र है -
किम्बा, दोंहा ना मानिया ह'ओं टी' पाषंड |
'एके मानी' , आरे ना मानी, - एइ मत भण्ड ||
जो दोनों को ही नहीं मानते वे पाखंडी हैं, एक को मानना तथा दूसरे को नहीं मानना यह ढोंग है | (चै.च.आ. ५.१७७)
इति गौड़ीय कंठहार में 'नित्यानंद तत्व' वर्णन नामक पंचम रत्न समाप्त |
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