रसिकानंद जी का अविर्भाव
श्रील रसिकानंद देव गोस्वामी १५१२ शकाब्द में मेदिनीपुर जिले के अंतर्गत सुवर्ण रेखा और दोलंग नमक नदियों के किनारे पर स्थित रोहिणी या रयनी ग्राम में आविर्भूत हुए थे | इनके पिता का नाम राजा अच्युतानंद और माता का नाम श्रीमती भवानी देवी था |
सुवर्ण रेखा नदी आजकल मेदिनीपुर और उड़ीसा में प्रवाहित होती है | पहले मेदिनीपुर ज़िला उड़ीसा के अंतर्गत था | राजा अच्युतानंद उड़ीसा के करण कुल में जन्मे थे | इस कुल को बंगाल में कायस्थ कुल कहा जाता है | वैष्णव निर्गुण होते हैं जो किसी जाति या कुल के अन्दर नहीं हैं | करण कुल को धन्य करने के लिए ही राजा अच्युतानंद और श्रीरसिकानंद जी का इस कुल में आविर्भाव हुआ |
श्रीलरसिकानंद जी श्रीकृष्ण लीला में मधुर रस की मंजरी थे | जबकि सख्य रस आश्रित श्रील ह्रदय चैतन्य के शिष्य होने पर भी श्रील जीव गोस्वामी जी के संग से श्रील श्यामानंद प्रभु मधुर रस के आश्रित हो गए थे और उन्होंने ही श्री रसिकानंद देव जी को श्रीराधा कृष्ण जी की उपासना का मन्त्र प्रदान किया था |
श्रील रसिकानंद देव जी का दूसरा नाम श्री रसिक मुरारी था | कहीं कहीं लिखा है कि रसिक और मुरारी, श्रील श्यामानंद प्रभु जी के दो प्रधान शिष्य हैं और कहीं लिखा है कि एक ही प्रधान शिष्य दो नामों से जाने जाते हैं | दो नाम मिलकर ही रसिक-मुरारी हुआ है | माता जाह्न्वा जी के शिष्य श्री नित्यानंद दास जी द्वारा रचित 'प्रेम विलास' में श्री रसिक और मुरारी नमक दो अलग-अलग व्यक्ति बताये गए हैं जो रयनी के रहने वाले थे किन्तु श्रील नरहरी चक्रवर्ती ठाकुर जी द्वारा रचित 'भक्ति रत्नाकर' ग्रन्थ में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि यह दोनों नाम एक ही व्यक्ति को संबोधित करते हैं |
रयनी गाँव में राजा अच्युतानंद जी के प्रसिद्ध पुत्र रहते थे जिनके दो नाम थे: रसिकानंद और मुरारी इसलिए उन्हें रसिक-मुरारी के नाम से भी जाना जाता है | बाल्यकाल से ही वे शास्त्रों में निपुण थे (भक्ति रत्नाकर, १५.२७-८)
रसिक मुरारी जी की श्यामानंद प्रभु जी से भेंट
श्रील रसिक मुरारी जी सद्गुरु की प्राप्ति के लिए व्याकुल थे जो उन्हें आध्यात्मिक मार्ग में निर्देश दे सके | एक दिन वे घंटाशीला में एक निर्जन स्थान में बैठकर ध्यान में मग्न हो गए | ध्यानमग्न अवस्था में उन्हें आकाशवाणी सुनाई दी कि 'हे मुरारी, तुम चिंता मत करो, तुम्हारे गुरुदेव श्री श्यामानंद जी हैं | तुम शीघ्र ही उनके दर्शन पाओगे | उनके श्री चरणों में आश्रित होकर तुम कृतार्थ हो जाओगे |'
आकाशवाणी सुनने के बाद श्रीलमुरारी जी परम उत्साह और आनंद के साथ 'श्यामानंद' नाम का मंत्र जप करने लगे | श्रील श्यामानंद प्रभु के दर्शनों के लिए व्याकुल श्रील मुरारी सारी रात क्रंदन करते रहे | रात्रि के अंतिम प्रहर में श्रील श्यामानंद प्रभु ने स्वप्न में उन्हें दर्शन देते हुए कहा - "अब और लम्बे समय तक चिंता मत करो, प्रात:काल ही तुम्हे मेरे दर्शन होंगे |"

रसिकानंद जी एक शक्तिशाली प्रचारक बने
अपने शरीर, मन और आत्मा से एकांतिकता के साथ गुरु सेवा कर श्री रसिकानंद देव गोस्वामी थोड़े ही दिनों में श्री श्रील श्यामानंद प्रभु के प्रधान शिष्य एवं महाशक्तिशाली आचार्य के रूप में परिणत हो गये | वास्तव में सद्शिष्य ही सद्गुरु होता है | तथाकथित शिष्य नामधारी बहुत हो सकते हैं किन्तु वास्तविक गुरु निष्ठ और अनन्य सेवा परायण शिष्य में ही गुरु की सारी शक्ति अर्पित होती है | गुरु कृपा से समृद्ध होने के पश्चात् श्रीलरसिकानंद देव गोस्वामी ने बहुत से नास्तिक, मुस्लिम और अन्य बद्ध जीवों को भगवद्भक्ति रूपी प्रेम रत्न प्रदान कर उनका उद्धार किया था |
एक बार एक दुष्ट यवन ने श्रीलरसिक मुरारी जी का दमन करने के लिए दो मत्त हाथियों को भेजा किन्तु श्रील रसिकमुरारी प्रभु ने उन दोनों को अपना शिष्य बनाकर उन्हें भी विष्णु-वैष्णवों की सेवा में लगा दिया | जिन्होंने श्रीलरसिकमुरारी की इस अलौकिक शक्ति का प्रभाव देखा वह परम विस्मित और चमत्कृत हो गये और वह दुष्ट यवन भी स्वयं उनके पास आकर शरणागत हो गया था |
श्रील श्यामानंद प्रभु जी ने अपने आराध्य देव गोपीवल्लभपुर के श्रीगोविंद जी की सेवा श्रीलरसिकानंद देव गोस्वामी जी को प्रदान की थी | उन्होंने जाति-धर्म के विचार बिना अनंत जीवों का उद्धार किया | श्रीलरसिकानंद जी निरंतर हरिनाम संकीर्तन में मत्त रहते थे | कौन उनकी इन लीलाओं का स्मरण करके भाव विभोर न होगा ? (भक्ति रत्नाकर १५.८१-६)
प्रेम विलास के १९ वें अध्याय में इसकी पुष्टि की गयी है, "उन्होंने बहुत से अपराधिओं और यवनों का उद्धार किया |"
श्रीलरसिकानंद देव गोस्वामी जी की औलोकिक शक्ति के प्रभाव से आकर्षित होकर मयूरभंज के राजा श्री वैद्यनाथ भंज उनके शिष्य हुए | उनके अन्य शिष्य थे पटाशपुर के राजा श्री जगपति, मायन के राजा चंद्रभानु, पान्चेट के राजा श्री हरिनारायण, धारेंदा के राजा श्रीभीम, श्रीकर, उड़ीसा के उस समय के शासनकर्ता इब्राहीम खान के दामाद अहमद बेग इत्यादि |
श्रील रसिकानंद देव गोस्वामी जी ने श्री श्यामानंद-अष्टक, भक्त-भागवत अष्टक और कुंज्केली-द्वादशक आदि ग्रंथों की रचना की |
रसिकानंद जी का तिरोभाव
ऐसा कहा जाता है की १६५२ शकाब्द में तिरोभाव से पूर्व श्रील रसिकानंद देव गोस्वामी सात सेवक लेकर जलेश्वर के निकट वांशदह ग्राम में गये थे जिस गाँव से श्रीमन्चैतन्य महाप्रभु जी, श्री नित्यानंद प्रभु के साथ पुरी जाते समय निकले थे | (चैतन्य भागवत ३.२.२६३-४)
संकीर्तन करते हुए श्रील रसिकानंद जी अपने सेवकों के साथ रेमुणा पहुंचे | जब वे प्रसिद्ध क्षीरचोरा गोपीनाथ के प्रांगण में पहुंचे तो देखते ही देखते श्रील रसिकानंद जी गोपीनाथ जी के विग्रह में प्रविष्ट हो गये, उनके शिष्यों ने भी वहीँ शरीर त्याग दिया था | आज भी रेमुणा में क्षीरचोरा गोपीनाथ के आँगन के एक ओर श्रीलरसिक मुरारी जी की पुष्प समाधि है और साथ ही उनके सात सेवक भक्तों की समाधि भी है | श्री रसिकानंद देव गोस्वामी जी के तिरोभाव के उपलक्ष में रेमुणा में प्रत्येक वर्ष बारह दिन का विशेष महोत्सव मनाया जाता है जो माघ महीने में शिव चतुर्दशी से प्रारंभ होता है |
श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज |
आस्तिक्य दर्शन के रचयिता श्री विशाम्भारानंद जी श्री रसिकानंद देव गोस्वामी जी के वंश में ही आविर्भूत हुए थे |
(द्वारा: श्रील भक्ति वल्लभ तीर्थ महाराज)
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