हमारे मठ में एक बुजुर्ग थे। पंजाब से थे।
उनकी बड़ी सी मूंछ थी। वे सिर के बाल साफ करवाते थे किन्तु मूंछे साफ नहीं करते थे। कभी उनसे पूछो कि बाबा, मूंछे साफ क्यों नहीं करते तो वो कहते मैं कोई लड़की हूँ जो मूछें कटाऊँ?
मूछें मरोड़ते हुए कहते- मैं राजपूत हूँ, मूंछे नहीं कटाऊँगा।
यहाँ पर विचार करने वाली बात यह है कि मैं राजपूत हूँ, मैं बाह्मण हूँ, मैं फलां जाति का हूँ आदि ………जब तक इस भूमिका से हम ऊपर नहीं उठेंगे, तब तक हम लोग भक्ति में आगे नहीं बढ़ सकते।
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