बुधवार, 21 सितंबर 2022

जब कन्हैया उस गोपी के पुत्र जैसे दिखने लगे

नन्दनन्दन भगवान श्रीकृष्ण वृज में माखन चोरी करते, दोस्तों को खिलाते, बन्दरों को भी खिलाते………आनन्द से दिन बीतते।

गोपियाँ कभी-कभी इस बारे में यशोदा मैया से शिकायत भी करतीं कि ये लाला तेरा खुद खाय तो कोई बात नहीं, किन्तु ये बन्दरों को क्यूँ खिला देता है और हमारे बर्तन भी तोड़ देता है।

मैया हँस देतीं व कह देतीं कि कभी पकड़ के लाओ तो मानूँ कि वो माखन चुराता है। ऐसे कैसे मैं मान जाऊँ

गोपियों ने युक्ति लगाई कि हम सारे बर्तन ऊँचा रख देंगे ताकि उनकी पकड़ से दूर हो।

श्रीकृष्ण एक दिन सखाओं के साथ प्रभावती गोपी के यहाँ गये। वहाँ पर चुपके-चुपके गये। दही-माखन देख लिया कि वो ऊपर रखा है।

श्रीकृष्ण ने आठ दोस्तों को नीचे बिठाया, उनके ऊपर चार, फिर उनके ऊपर दो और उनके ऊपर स्वयं चढ़ गये लेकिन मटकी फिर भी कुछ दूर ही रही। तब उनके दोस्त श्रीदाम ने कंकड़ से मटकी में छेद कर दिया। सारा दही बह निकला।

सभी लूट-लूट कर खाने लगे।

बर्तन फूटने की आवाज़ से प्रभावती जी चौंकी कि ये कौन आया? दबे पाँव फटाफट उस कमरे की ओर आयीं उनको देखकर सब बच्चे भागे। जो कन्हैया के नीचे थे, वे भी भागे। दृश्य यूँ बना कि बच्चे सब भाग गये और कन्हैया मटकी से लटके रह गये।

प्रभावती जी हँस पड़ीं ये देखकर। स्नेह तो करती ही हैं, लाला से, अतः कहीं चोट न लग जाये, ये सोचकर धीरे-धीरे नीचे उतारा, बोलीं- आज तू पकड़ा गया। आज यशोदे को दिखाती हूँ कि उसका लाला क्या करता है। चल, तुझे उसके पास ले चलूँ

सभी गोपियाँ ये दृश्य देखकर पीछे-पीछे चलने लगीं, ये देखने के लिए कि क्या होता है, नन्द-भवन में?

जैसे ही प्रभावती जी कन्हैया को लेकर श्रीनन्द भवन पहुँचीं, सामने से श्रीनन्द महाराज आते हुए दिखे। प्रभावती जी एक पल के लिए श्रीनन्दलाल का हाथ छोड़ा और घूँघट खींच लिया।

श्रीकृष्ण ने सोचा कि मैया को अच्छा नहीं लगगा मुझे ऐसे देखकर। भगवान की इच्छा को देखकर उनकी शक्ति ने विस्तार किया और श्रीकृष्ण प्रभावती जी के पुत्र के जैसे दिखने लगे।

प्रभावती जी, यशोदा जी से बोलीं- यशोदे1 ये देख मैं पकड़ लायी हूँ तेरे लाला को, रंगे हाथ पकड़ा है मैंने इसे आज।

मैया ने देखा और मुस्कुराते हुए बोलीं- प्रभे! घूँघट तो उतार। देख तो तू किसे पकड़ कर ले आयी है।

प्रभावती ने घूँघट उतारा और देखा कि उन्होंने अपने पुत्र को ही पकड़ा हुआ था। वे घबरा गईं कि ये क्या हो गया? मैं इसे कैसे पकड़ लायी?

उनकी हालत देखकर सारी गोपियाँ हँसने लगीं व कन्हैया को स्मरण करने लगीं

प्रभावती जी अपने पुत्र से बोलीं- ये तू कहाँ से आ गया? मैंने तो तुझे पकड़ा नहीं था।

घर के पास जब पहुँचीं तो कन्हैया ने बोला- माँ! ओ माँ अब तो मुझे छोड़ दो। 

प्रभावती जी घूमीं और जैसे ही उन्होंने कन्हैया को देखा, तो उन्हें तो जैसे करंट ही लग गया हो। सोचने लगीं कि ये कैसे आ गया?

कन्हैया बोले- माँ! आपको न गलती लग गई। आपने मुझे ही पकड़ा था, लेकिन विधाता का विधान देखो, वो मेरी रक्षा करते हैं वहाँ जाकर आपको मैं आपके पुत्र जैसा दिखने लगा। इसलिए आगे से मुझे पकड़ना नहीं, कहीं ऐसा न हो कि अगली बार विधाता मुझे आपके पति के रुप में न बदल दे।

प्रभावती जी तो वहाँ से भागीं  तब से श्रीकृष्ण को सभी गोपियों ने पकड़ने का विचार छोड़ दिया।

वैसे गोपियों की इच्छा होती थी कि श्रीकृष्ण हमारे यहाँ से खायें, यहाँ आते रहें, इसी भाव से वे घी-माखन-दही बनाते थे कि कन्हैया आयेगा और इसको खायेगा। और कन्हैया उनकी इच्छा को ही पूरा करने के लिए उनके यहाँ जाते थे।




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें