बुधवार, 27 जुलाई 2022

श्रीकृष्ण ने मुख बन्द कर लिया

 बात उन दिनों की है जब श्रीकृष्ण अपने सखाओं के साथ वृज में खेलने के लिए जाते थे।

एक दिन कुछ सखा मैया यशोदा जी के पास दौड़ते हुए आये व उनका पल्लू खींचते हुए बोले- मैया, मैया, लाला ने मिट्टी खाई है। कन्हैया ने मिट्टी खाई है।

मैया ये सुनते ही घबरा गईं व सोचने लगीं कि मैया का पेट खराब हो जायेगा।

कैसा स्नेह है मैया का अपने लाला के लिए? जिनमें सारा ब्रह्माण्ड समाया है, उनका पेट कैसे खराब हो सकता है? किन्तु मैया को तो चिन्ता है, अतः भागीं

सीधा कन्हैया के पास जा पहुँची। जिनके आँख तरेरने से सारी सृष्टि काँप उठती है, वे आज मैया के डर से दोस्तों के पीछे खड़े हैं

सर्वशक्तिमान भगवान, अपने भक्त के आगे शर्मिंदा से खड़े हैं

मैया ने आते ही पूछा- क्यों रे नटखट! अपने घर में मिश्री नहीं है क्या जो तूने मिट्टी खा ली?

कन्हैया डर से खड़े हैं! कुछ बोल नहीं रहे हैं, बस 'न' में गर्दन हिला दी।

मैया- तेरे सारे सखा बोल रहे हैं कि तूने मिट्टी खाई है?

कन्हैया ने फिर 'न' में सिर हिलाया।

मैया- तेरा बड़ा भाई बलराम भी यही बोल रहा है। वो तो झूठ बोलता नहीं! तूने पक्का मिट्टी खाई है। मुख खोल, मुझे दिखा।

जब श्रीकृष्ण ने देखा कि मैया बार-बार मुख खोलने को बोल रही है तो उन्होंने अपना मुख खोल दिया। 

मैया झुकीं, देखने के लिए। दृष्टि जैसे ही श्रीकृष्ण जी के मुख की ओर गयी, मैया वहीं की वहीं रह गईं भगवान का ऐश्वर्य प्रकट हो गया। मैया ने भगवान के मुख के भीतर ब्रह्माण्ड, जीव, जन्तु, समुद्र, पेड़, सारे ब्रह्माण्ड आदि………यहाँ तक कि अपने को भी देखा और श्रीकृष्ण को भी।

मैया को समझ में ही नहीं आया कि ये क्या हो गया? वो तो एकदम घबरा गईं भगवान ने देखा कि मेरी माता घबरा गयी हैं तो उनकी स्थिति को देखते हुए श्रीकृष्ण ने मुख बन्द कर लिया। 

मैया सिधी हुईं और सोचने लगीं कि ये मैंने क्या देखा? माता का वात्सल्य ज़ोर पकड़ने लगा। उन्हें लगा कि शायद मैंने स्वप्न देखा या ये कोई माया थी अथवा मेरे पुत्र को किसी भूत ने पकड़ लिया है।

मैया शीघ्रता से प्रार्थना करने लगीं- हे विश्व के रक्षक, हे भगवान, हे नारायण, मेरे पुत्र की रक्षा करो।

भगवान अपने भक्त को ज्यादा कष्ट में देख नहीं सकते। भगवान की इच्छा को देखते हुए उनकी शक्ति योगमाया ने शक्ति संचार की और मैया इस सारी घटना को भूल गईं उन्होंने स्नेह से अपने लाडले को उठाया और प्यार करने लगीं

महान वैष्णव आचार्य श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती जी बताते हैं कि इस लीला के माध्यम से भगवान ने ये बताया कि वे जगत के अन्दर भी हैं और बाहर भी। 






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