गुरुवार, 26 मई 2022

अरी, बोल क्यों रही हो, भीतर ले आ उसे।

बचपन में श्रीकृष्ण व बलराम जी के साथ गोकुल में रह रहे हैं

गोपियाँ  देखतीं कि कैसे मैया यशोदा जी अपने लाला को दुलारती हैं, गोद में खिलाती हैं, पुचकारती हैं।--------------------- उनकी भी इच्छा होती कि हमें भी कभी मौका मिले तो हम भी कन्हैया को गोद में उठाकर खिलायें, दुलारे,……

भगवान तो भक्त- वत्सल हैं, भक्तों की इच्छा को पूरा कर देते हैं

जब भी ऐसी गोपियाँ नन्द भवन में होतीं तो श्रीकृष्ण रोने की लीला करते। ऐसे रोते कि चुप ही नहीं होते। तब मैया उन्हीं गोपियोंं से कहती-- इसको उठाओ, इसे चुप कराओ।

गोपियाँ नन्हे कन्हाई को उठातीं, दुलारतीं, चुप करातीं

अपनी इस लीला से भगवान उनकी इच्छा को पूरी कर देते।

कन्हैया उनकी गोद में आते ही चुप हो जाते।

श्रील रूप गोस्वामी जी वर्णन करते हैं कि श्रीकृष्ण के स्पर्श से ही गोपियाँ हर्षित हो उठतीं, उन्हें रोमांच आ जाता, हालांकि वे जान न पातीं कि ये क्यों हो रहा है किन्तु श्रीकृष्ण के स्पर्श उन्हें अद्भुत आनन्द की अनुभूति होती।

एक गोपी ऐसी थी जिसकी इच्छा थी कि मैं ही उठाऊँ नन्द-नन्दन श्रीकृष्ण को। कोई और पास में न हो।

एक दिन मैया यशोदा काम में व्यस्त थीं नन्दनन्दन श्रीकृष्ण घुटनों के बल चलते-चलते घर से बाहर बरामदे में आ गये। वो गोपी उस समय घर के अन्दर थी। उसने मैया को पूछ ही लिया-- लाला, कहाँ है?

मैया ने भी इधर-उधर देखा किन्तु लाला को न देख बोलीं--- अभी तो यहीं था, कहाँ गया। ढूँढो।

सब ढूंढने लगे।

वो गोपी ढूँढते हुए बाहर बरामदे में चली आई।

कन्हैया को वहाँ देख, बोली--- मिल गया, लाला मिल गया।

मैया ने घर के भीतर से ही कहा --- अरी, बोल क्यों रही हो, भीतर ले आ उसे।

गोपी ने लाला को उठाया और खूब प्यार करने लगी।

इस प्रकार श्रीकृष्ण ने उस गोपी की भी इच्छा पूरी की।



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