बुधवार, 30 मार्च 2022

जब एक गोपी ने कन्हैया को पूछा कि बता तेरा कान कहाँ है?

 भक्त और भगवान का अद्भुत प्रेम और उस प्रेम की झलक मिल रही है, भगवान के वृज विलास में।

श्रीकृष्ण बालक लीला कर रहे हैं। सर्वशक्तिमान भगवान को कोई क्या सिखा सकता है, सर्वज्ञानों के ज्ञाता को भला कोई क्या बता सकता है, जो जगद्गुरू हैं उन्हें कोई क्या ज्ञान दे सकता है, फिर भी भक्तों को आनन्द देने के लिए श्रीकृष्ण बच्चे का अभिनय कर रहे हैं। भक्तों के आनन्द को देखकर स्वयं भी आनन्दित हो रहे हैं।

जैसे एक बच्चे को सिखाया जाता है, वैसे ही गोपियाँ श्रीकृष्ण को सिखा रही हैं

वृद्धा गोपियाँ--- कन्हैया! ओ कन्हैया! ये बता की तेरा हाथ कहाँ है?

कन्हैया अपना हाथ उठा कर बता देते कि ये मेरा हाथ है।

कोई गोपी--- अच्छा लाला, तेरा नाक कहाँ है?

कन्हैया कुछ क्षण विचार करके अपने नाक पर अँगुली रख देते।

अब जब कन्हैया ठीक उत्तर देते तो सभी गोपियाँ बड़ा प्रसन्न होतीं व उनका उत्साह बढ़ाने के लिए कहतीं--- बढ़िया, बहुत अच्छा, ठीक उत्तर, आदि।

एक दिन एक गोपी ने पूछा--- कन्हैया1 ये बता कि तेरा कान किधर है?

कन्हैया ने आँखें बन्द कीं, विचार करने लगे और कुछ देर बाद, आँख पर ऊँगली लगाकर बताया कि ये मेरा कान है।

जवाब गलत था। सभी गोपियाँ--- हे, हे! हो, हो! गलत जवाब कहकर हँसने लगीं

कन्हैया को ये जमा नहीं कि कोई उनका मज़ाक उड़ा रहा है, वो भी गोपियाँ वे रूठ कर अपनी मैया की गोद में आँचल में सिर छुपा के खड़े हो गये।

मैया ने अपने लाला की स्थिती भाँप ली व उसे पुचकारते हुये गोपियों से बोलीं--- अरी गोपियो! क्यों हँस रही हो? मेरे लाला को पता है कि उसका कान कहाँ है।

मैया ने अपने लाला के कान पर हाथ रखते हुए कहा कि देखो उसे पता है कि ये उसका कान है।

अगले दिन एक युवा गोपी ने कन्हैया को पूछा--- कन्हैया! ओ कन्हैया! बता, बता कि तेरा कान कहाँ है?

कन्हैया कुछ क्षण रुके फिर आगे बढ़ कर उन्होंने उसी गोपी का कान पकड़ लिया।

ये देख कर सभी हँस पड़े।


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