सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

यशोदे! अपने लाला को बाहर ना निकाला कर..............

नन्द-नन्दन भगवान श्रीकृष्ण वृज में अपने भक्तों के साथ आनन्द से रह रहे हैं। उनको आनन्द दे रहे हैं और उनके आनन्द से स्वयं भी प्रसन्न हो रहे हैं

जैसे-जैसे छोटे कन्हाई बड़े होने लगे, गोपियों का स्नेह उनसे और बढ़ने लगा। धीरे-धीरे श्रीकृष्ण आवाज़ों को पहचानने लगे।

जब कोई उनका नाम लकर बुलाता तो वे बुलाने वाले की ओर देखने लगते। कभी-कभी मुस्कुरा देते तो पुकारने वाला प्रसन्नता से उछल पड़ता। 

..........................देखो! देखो! कान्हा मुस्कुरा रहा है। देखो! मुझे देखकर मुस्कुरा रहा है।

श्रीकृष्ण फिर दूसरों को देखने लगते कि ये मुझे बुलायेंगे ताकि वे पुकारें और श्रीकृष्ण उनकी ओर देखकर मुस्कुरायें इस प्रकार उनकी खुशी में भगवान भी प्रसन्न हो रहे हैं

अगर कभी-कभी कोई तंग करने के लिए या होशियारी से बड़े भाई बलराम जी को पुकारता तो श्रीकृष्ण देखने लगते कि ये अब मुझे भी बुलायेंगे किन्तु जब कोई नहीं बुलाता तो वे तालियाँ बजाते, किलकारियाँ लेते, चरणों की नुपूर बजाते कि मैं भी हूँ यहाँ! मुझे भी तो बुलाओ। मैं तुम्हारी पुकार का इंतज़ार कर रहा हूँ!

यशोदा मैया तो वात्सल्य की मूर्ति। रोज़ श्रीकृष्ण का शृंगार करतीं, उन्हें सजातीं-संवारती।

भगवान भी अपना सुन्दर रूप दिखाकर सबको मोह लेते। क्या गोप, क्या गोपी सभी उनको देखने के लिए लालायित रहते।  गोपियाँ तो रोज़ ही सुबह किसी न किसी बहाने से श्रीकृष्ण को देखने चली आतीं कोई भी बहाना बनातीं यशोदे! देख मैंने ताज़ा मक्खन निकाला, सोचा लाला के लिए ले जाऊँ, आदि। कोई न कोई बहाना……

यशोदा मैया सब समझती और मुस्कुरा देतीं

आने पर, गोपियाँ भगवान श्रीकृष्ण को देखने में ही खो जातीं इतना खो जातीं कि कई यशोदा मैया को उन्हें हिलाना पड़ता, झझकोरना पड़ता कि अरी कहाँ खोई हुई हो, घर का सारा काम कर आई क्या?………गोपी होश में आते ही फटाफट घर की ओर भागती।

कभी-कभी कोई गोपी कह देती -- यशोदे! अपने लाला को बाहर ना निकाला कर। बहुत मनमोहक है ये। कहीं हमारी नज़र न लग जाये इसे। हम इसी में ही खोई रहती हैं?

ऐसी अद्भुत लीलायें, भगवान श्रीकृष्ण वृज में अपने भक्तों के साथ करते रहते।


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