भगवान के भक्तों का संग हर कोई चाहता है। यहाँ तक की श्रीशिव जी भी उनका संग चाहते हैं।
श्रील सनातन गोस्वामी जी का नियम था कि वे वृज के विभिन्न स्थानों पर रहते हुए भजन करते थे। ग्रन्थ लिखना, हरिनाम करना, हरिकथा सुनना व सुनाना, यही उनकी दिनचर्या थी।
एक दिन वे मानसी गंगा आये। उन्होंने सोचा कि यहीं रहकर हरिनाम करते हैं। एक नीम के वृक्ष के नीचे वे बैठ गये और भजन करने लगे।
कुछ दिनों बाद उन्होंने विचार किया कि यह स्थान ठीक नहीं है, कहीं और जाना चाहिए क्योंकि उस स्थान पर मच्छर बहुत थे, और मच्छर उन्हें लिखने ही नहीं देते थे।
उस रात को जब विश्राम करने लगे तो श्रीशिव जी स्वप्न में प्रकट हो गये। शिव जी ने पूछा कि आप यहाँ से क्यों जाना चाहते हैं?
श्रील सनातन गोस्वामी जी ने कहा कि यहाँ पर मच्छर बहुत हैं।
शिव जी - आप यहाँ से नहीं जाइये। कल से यहाँ पर मच्छर नहीं होंगे।
और अगले दिन से वहाँ एक भी मच्छर नहीं था।
अर्थात् श्रील सनातन गोस्वामी जी का संग प्राप्त करने के लिए श्रीशिव जी ने ऐसा किया।
वो स्थान अभी भी है। श्रीगोवर्द्धन में चकलेश्वर महादेव जी के नाम से शिव जी का मन्दिर अभी भी उस स्थान पर है।
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