रविवार, 17 अक्तूबर 2021

जब श्रीमती राधाजी ने आपको अपना कहा

 

प्रसिद्ध टीकाकार व महान वैष्णवाचार्य श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर्जी ने श्रील कृष्ण दास कविराज गोस्वामीजी के सम्बन्ध में जो लिखा है उससे यह पता चलता है कि श्रील कृष्णदास कविराज गोस्वामी जी श्रीमती राधारानी जी के निजजन थे तथा स्वाभाविक रूप से ही उनके हृदय में भगवत् तत्त्व प्रकाशित था।

श्रील कविराज गोस्वामीजी ने कामगायत्री के अक्षरों की संख्या 25 बोलने
के स्थान पर 24-1/2 (साढ़े चौबीस) क्यों बोली, समझ न आ पाने के कारण श्रील चक्रवर्ती पादजी बहुत विह्वल हो उठे। यहाँ तक कि इस विह्वलता से उन्होंने राधाकुण्ड के तट पर देह त्याग का संकल्प ले लिये।

देहत्याग का संकल्प करने पर मध्यरात्रि को तन्द्रावस्था में उन्होंने स्वप्न में देखा -- स्वयं वृषभानुनन्दिनी जी उनके पास आकर कह रही हैं - 'हे विश्वनाथ! हे हरिबल्लभ! आप उठो! कृष्णदासकविराज ने जो लिखा वह सत्य ही है। वह मेरी नर्म सहचरी है। मेरे अनुग्रह से ही वो मेरे अन्दर की सब बातें जानते हैं। उनके वाक्यों पर सन्देह नहीं करना। 'वर्णागमभास्वत' ग्रन्थ में लिखित है कि 'य' कार के पश्चात् 'वि' अक्षर रहे, तो वह 'य' कार आधा अक्षर कहलाता है। अत वह 'य' कार ही आधा अक्षर है। '

श्रील कृष्ण्दास कविराज जी ने के श्रीपाट श्रीझामटपुर में श्रीनित्यानन्द
प्रभुजी का अति छोटा पादपीठ मन्दिर है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि इसी स्थान पर श्रील कविराज गोस्वामीजी ने श्रीनित्यानन्द प्रभुजी की कृपा प्राप्त की थी।

श्रील कृष्णदास कविराज गोस्वामी जी की जय!

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