राजस्थान के जयपुर शहर में एक ब्राह्मण रहता था जिसका नाम था श्रीचन्द्र शर्मा। उसके घर में श्रीरसिक राय नाम के श्रीविग्रह थे (श्रीकृष्ण की मूर्ति) । किसी कारणवश उससे सेवा ठीक से नहीं हो पा रही थी।
आदेश के अनुसार वो ब्राह्मण देव , श्रीमती राधा जी व श्रीरसिक राय विग्रहों को लेकर श्रीक्षेत्र में गगांमाता जी के पास पहुँचे । उन्होंने श्रीमती गंगा माता गोस्वामिनी जी को श्रीविग्रह की सेवा के लिए प्रार्थना की।
पहले तो श्रीमती गंगा माता गोस्वामिनी जी ने उसे ग्रहण करना अस्वीकार कर दिया, कारण यह की, आपके लिए श्रीविग्रहों की राज-सेवा चलानी असम्भव थी, परन्तु बाद में वो ब्राह्मण द्वारा तुलसी के बगीचे में ही विग्रहों को छोड़कर चले जाने पर श्रीरसिक राय जी ने स्वयं ही अपनी सेवा के लिए गंगा माता जी को स्वप्न में आदेश दिया।
स्वप्न में आदेश मिलने पर गंगा माताजी ने उल्लास के साथ श्रीविग्रहों का प्रकट उत्सव मनाया।
आप श्रीगदाधर पण्डित गोस्वामी जी की शिष्य परम्परा में हैं। आप के पिताजी द्वारा दिया गया नाम था श्रीशची देवी'। आप बंगलादेश के राजशाही जिले के पुंटिया के राजा श्रीनरेशनारायण की कन्या थीं।
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