श्रील वृन्दावन दास ठाकुर जी ने परम पतित पावन श्रीनित्यानन्द प्रभु की कृपा प्राप्त की थी, इसलिए आपको श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु का मन्त्र शिष्य भी कहा जाता है।
आपने 1457 शकाब्द में 'श्रीचैतन्य भागवत' नामक अतुलनीय ग्रन्थ की रचना की थी।श्रील कृष्णदास कविराज गोस्वामी जी ने श्रीचैतन्य चरितामृत में लिखा --
श्रीचैतन्य लीलार व्यास-दास वृन्दावन ।
मधुर करिया लीला करिला रचन॥ (चै-चै-आ / 48)
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ग्रन्थ विस्तार भय छाड़िला ये ये स्थाने।
सेइ सेइ स्थाने किछु करिब ब्याख्याने॥ (चै-चै-आ / 49)
अतः श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु एवं श्रीमहाप्रभु की सम्पूर्ण लीलाओं के रसास्वादन के लिए हमें श्रील वृन्दावन दास ठाकुर द्वारा रचित श्रीचैतन्य भागवत तथा श्रील कृष्ण दास कविराज गोस्वामी द्वारा रचित श्रीचैतन्य चरितामृत ग्रन्थों को पढ़ना चाहिए।
श्रील वृन्दावन दास ठाकुर जी की जय !!!!!!!
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