एक वैष्णव आचार्य परमपूज्यपाद श्रीश्रीमद् भक्ति वेदान्त नारायण महाराज जी ने एक बार बताया की श्रीमद् भागवत में जो गोपियों के चीर हरण का प्रसंग है, वो श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं में से एक है।
दुनिया के कामुक व्यक्ति की तरह से ये क्रिया नहीं है। दुनिया की कामना - वासना में फंसा कोइ लड़का जैसे किसी लड़की की चुन्नी खींच लेता है, उस तरह नहीं है यह भगवान की लीला, क्योंकि श्रीकृष्ण ने स्त्रियों का सम्मान ही किया। ज़रा सोचने की बात है कि पूतना ने उन्हें ज़रा सा माँ की तरह उठाया, माँ की तरह थोड़ा सा दुलारा, वो पूतना उन्हें दूध पिलाने के बहाने से चाहे ज़हर पिलाने आयी है, तो भी भगवान कृष्ण ने कहा कि तुझे मैं माता की गति प्रदान करता हूँ और करी। जो भगवान उनको मारने के लिये आयी पूतना दुष्ट रक्षसी को माँ के समान गति प्रदान कर सकते हैं, वे श्रीकृष्ण स्त्रियों का अपमान कैसे कर सकते हैं?
चीर-हरण लीला में जिन श्रीकृष्ण ने द्रौपदी का अपमान नहीं होने दिया, उसकी बेइज्जती नहीं होने दी, द्रौपदी को नग्न नहीं होने दिया पुरुषों से भरी सभा में, वो श्रीकृष्ण किसी स्त्री का अपमान कैसे कर सकते हैं? भगवान ने उनको सज़ा दी जिन्होंने ऐसा करने का दुःसाहस किया, अतः वे ऐसा कैसे कर सकते हैं कि किसी स्त्री का अपमान कर दें?
साथ में ही उन्होंने बताया जिन श्रीकृष्ण ने नरकासुर की कैद से 16000 लड़कियों को, स्त्रियों को छुड़वाया, नरकासुर का वध करके। नरकासुर के वध के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने उन सभी कन्याओं से कहा कि तुमको तुम्हारे घर छोड़ देता हूँ अथवा घर छुड़वा देता हूँ। ये बात सुनकर वे बोलीं कि नहीं, हम घर नहीं जायेंगी। आपकी नौकरानी बनना स्वीकार है हमें, किन्तु घर नहीं जायेंगी। भगवान श्रीकृष्ण ने दया करके, उन्हें अपने यहाँ ही रख लिया। उनसे शादी की व अपनी रानी का दर्जा दिया। हरेक को अपना अपना महल प्रदान किया। जो श्रीकृष्ण इतना कुछ कर सकते हैं वे गोपियों का अपमान कैसे कर सकते हैं, वस्त्र हरण करके? साथ ही ये जो श्रीकृष्ण की चीर हरण की लीला है उससे पहले उनके प्राकट्य के बारे में तो पढ़ें? कैसा दिव्य प्राकट्य है उनका, पता लगता है कि वे साधारण मनुष्य नहीं, भगवान हैं।
जहाँ तक बात है गोपियों की, उनके वस्त्र हरण की, उसे ठीक से पढ़ें, जब श्रीकृष्ण ने वस्त्र हरण लीला की, उस समय क्या हो रहा था -- ……वे स्नान कर रही हैं, कपड़े अलग रखें हैं और वे स्नान कर रही हैं, बिना कपड़ों के, उस समय श्रीकृष्ण ने वस्त्र उठाये, उम्र कितनी है श्रीकृष्ण की, लगभग पाँच साल, जिन गोपियों के वस्त्र उठाये हैं] उनकी उम कितनी है, कोई चार साल की है, कोई साढ़े चार साल की है, कोई पाँच साल की है, तो हद कोई 6 साल की है, बच्चियाँ हैं।
अरे आज से कुछ साल पहले चले जाओ, तो पाँच-छः साल के बच्चे कपड़े ही नहीं पहनते थे, नंगे घूमते थे, तो पाँच साल के बच्चे ने चार साल की बच्ची का एक कपड़ा उठा लिया, जब वो नहा रही है, इसमें क्या गलत है?
क्योंकि हमारा दिमाग कलुषित है, इसलिये हमारे विचार कलुषित हैं, …… इसलिये हम हर बात को गलत ही सोचते हैं।
देहरादून में श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज 'विष्णुपाद' जी एक स्टेज़ पर बैठे थे। एक प्रसिद्ध रामानुज सम्प्रदाय के संन्यासी उनके पास बैठे प्रवचन कर रहे थे। जब उन आचार्ये ने देखा कि ये सब श्रीकृष्ण के भक्त हैं तो उन्होंने उन्होंने भी श्रीकृष्ण लीला की चर्चा शुरु कर दी और इसी चीर हरण लीला को सुनाने लगे। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण ने जो गोपियों के वस्त्र उठाये, उसके बहुत से कारण हैं। उनमें से एक कारण है कि श्रीकृष्ण इस सारी दुनिया को यह सन्देश देना चाहते हैं की पूर्ण नग्न स्नान नहीं करना चाहिये। …… अतः जब तक श्रीकृष्ण को समझेंगे नहीं तब तक श्रीकृष्ण लीला को समझना असम्भव है।
Transliteration in English:
One of the great Vaishnav Acharya Srila Bhakti Vedant Narayan Maharaj once explained the 'chir haran' pastimes of Sree Krishna, wherein He stole the clothes of Gopis when they were taking a dip in river Yamuna.
Please go through the pastimes of Supreme Lord Sree Krishna, when He stole the clothes. Sree Krishna at that time was about 5 years old and Gopis were of 5 or maximum 6 years old. If we will move back in time, we may recall that, children of 5-6 years used to roam here and there without clothes. So, under these circumstances of a boy lift the clothes of girls, when they were bathing, nothing should be mis-interpreted from such pastime.
Since our minds are polluted, hence we always have polluted thoughts.
Once His Divine Grace Srila Bhakti Dayita Madhav Goswami Maharaj 'Vishnupad' was sitting on a stage with a sannyasi of Ramanuja sampradaya. During his lecture that sannyasi explained that Sree Krishna performed such pastime only to convey to worldly people that one must not bathe naked.
Hence one cannot understand pastimes of Sree Krishna, without understanding Sree Krishna.
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