बुधवार, 27 मार्च 2019

यशोदा जी के यहाँ जन्म लेने वाली कन्या कौन थी?

यह तो सा जानते ही हैं कि कैसे भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ।

मथुरा की जेल में श्रीवसुदेवजी जब गोकुल से लौटे तो सब पहले जैसा हो गया। वे जिस बालिका को साथ लाये थे, वो रोने लगी। बालिका के रोने की आवाज़ को सुनकर पहरेदारों की नींद टूटी। वे शीध्रता से कंस को बुला लाये। मेरे काल का जन्म हुआ है, यही सोच लिये कंस शीघ्रता से अस्त-व्यस्त अवस्था में ही आ गया। कंस की बहन देवकी ने उसे देखते ही कहा कि भैया, ये तो कन्या है, इसे तो छोड़ दो।

कंस ने उसे अनसुना करते हुए बच्ची को झपटकर पकड़ा और ज़ोर से बड़े से पत्थर पर दे मारा। उसका हाथ खाली ही हवा में घूमा क्योंकि जैसे ही उसने उस बालिका को उठा कर फेंकने की कोशिश की, वो उसके हाथ से फिसल गयी व आकाश में ऊपर उठ गयी। देखते ही देखते वो आकाश में जाकर अष्ट-भुजा देवी सी दिखने लगी। अभी कंस सोच ही रहा था कि ये क्या हो गया! तभी उसका भीषण स्वर गूँज़ा -- रे मूर्ख! तेरे पूर्व जन्म का शत्रु तुझे मारने के लिये किसी अन्य स्थान पर प्रकट हो चुका है। अब तू व्यर्थ में निर्दोष बालकों की हत्या न कर।
इतना कहकर वो कन्या अन्तर्धान हो गयी।

देवकीजी के यहाँ स्वयं देवी महामाया ही इस कन्या का रूप लेकर आयीं। योगमाया को तो कोई दुष्ट प्राणी स्पर्श नहीं कर सकता। यह ठीक इसी प्रकार है जैसे भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने दक्षिण देशीय ब्राह्मण को बताया था कि रावण के साथ जो गयीं वो छाया-सीता थीं, श्रीरामचन्द्र की शक्ति श्रीमती सीता देवी नहीं।

भगवान के भक्त साधारण नहीं होते। ये अलग बात है कि भगवान के भक्ति भाव में डूबे होने के कारण कोई मायावी शक्ति उन्हें छू भी नहीं सकती। जैसे वात्सल्य रस के परम रसिक भक्त श्रीनन्द-यशोदा इत्यादि का वरुण लोक, विश्वरूऊप दर्शन आदि होने पर भी भ्रम न होना -- ये योग माया या जड़माया का कर्य नहीं है। ये तो प्रेम की अत्याधिकद्ता है। अक्सर प्रेम की अधिकता से ऐश्वर्य आवृत हो जाता है।


कंस उस कन्या की बात सुनकर आश्चर्यचक्ति हो गया व उसने देवकी-वसुदेवजी को बन्धन मुक्त कर दिया। कंस ने उन्से क्षमा याचना की और अपने महल में लौट आया। कुछ देर में उसने अपने सारे मंत्री बुलाये व सारी बात कह सुनाई। दुष्ट मन्त्रियों ने कु-सलाह ही दी। अतः उसने श्रीविष्णु को लक्ष्य कर ब्राह्मणों को मारने का आदेश दे दिया। सिद्धान्त यह है कि जो लोग महान सन्त पुरुषों का अनादर करते हैं उनकी आयु, लक्ष्मी, कीर्ति, धर्म, लोक-परलोक, विषय-भोग और सब कल्याण के साधन नष्ट हो जाते हैंं, जैसा यहाँ पर कंस के दुष्ट आचरण का परिणाम देखा गया है। 

जैसा भी हो यशोदा जी के यहाँ श्रीकृष्ण के साथ जन्म लेने वाली कन्या देवी महामाया थी, जिसे भगवान श्रीकृष्ण जी ने आशीर्वाद दिया था कि कलियुग में चारों तरफ आपकी पूजा होगी। (भा-  10/2/10-12)   आप अपने भक्तों को धन-धान्य से परिपूर्ण रखेंगी। आज के समय दुर्गा पूजा, काली पूजा, वैष्णो देवी की यात्रा, चण्डी पूजा, माता की चौकी, माता का जगराता तथा सरस्वती पूजा व नवरात्रों का व्रत उसी का प्रकाशित रूप है।

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