गुरुवार, 8 नवंबर 2018

दूर से हाथियों को वेग से अपनी ओर आते देख......

 आप अपनी तमाम इन्द्रियों से एकान्तिकता के साथ अपने गुरु (श्रील श्यामानन्द जी)  की सेवा कर, थोड़े ही दिनों में श्रीश्यामानन्द प्रभु जी के प्रधान शिष्य एवं महाशक्तिशाली आचार्य के रुप में परिणत हो गये। वास्तव में सद्शिष्य ही सद्गुरु होता है। तथाकथित शिष्यनामधारी बहुत हो सकते हैं किन्तु वास्तविक गुरुनिष्ठ अनन्य सेवा परायण शिष्य में ही गुरु की शक्ति अर्पित होती है। 
गुरु-कृपा से समृद्ध होने के पश्चात श्रीरसिकानन्द देव गोस्वामी ने बहुत से दस्यु, पाषण्डी व यवन तथा पतित जीवों को भगवद्भक्ति रूपी प्रेम रत्न प्रदान कर उनका उद्धार किया था। आपके ऐसे अद्भुत कार्यों से चिढ़ कर एक दुष्ट यवन ने श्रीरसिकमुरारी जी का दमन करने के लिये एक बार, दो मत्त हाथियों को भेजा । दूर से हाथियों को वेग से अपनी ओर आते देख, आप जरा सा भी विचलित नहीं हुये। अपनी गुरु-भक्ति के प्रभाव से आपने दो हाथियों को शान्त कर, अपना शिष्य बना लिया व उन्हें भी विष्णु-वैष्णवों की सेवा में लगा दिया। आपकी ऐसी अलौकिक शक्ति का प्रभाव देखकर सभी परम विस्मित और चमत्कृत हो गये।                       
श्रील रसिकानन्द देव गोस्वामी जी की जय !

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