शुक्रवार, 11 मई 2018

Sri Nitaicanda

गौर धाम में बहुत से ऐसे सिद्ध भक्तों का वास है जो साधक-भक्त के रूप में वहाँं रह रहे हैं। 

श्रील नरोतम ठाकुर जी ने लिखा है -- गौरांगेर संगीगने नित्य सिद्ध कोरे मानी……अर्थात् भगवान गौरांग के संगी-साथी सभी नित्य मुक्त सिद्ध हैंं।  उनमें सबसे प्रमुख हैं श्रीनित्यानन्द राम। श्रीबलराम ही गौर-लीला में श्रीनित्यानन्द के रूप में आये। श्रीनित्यानन्द जी एकचक्र में प्रकट हुए। श्रीगौरांग निज-जनों के साथ उनका मिलन हुआ जब श्रीचैतन्य महाप्रभु जी गया से लौटे थे, लगभग दिसम्बर 1508 में।
श्रील नरोतम ठाकुर जी बताते हैं कि गोलोक का खजाना तो उसका प्रेम है, और यही प्रेम इस जगत पर अवतरित हुआ, श्रीहरिनाम संकीर्तन के माध्यम से। -- गोलोकेर प्रेमधम हरिनाम संकीर्तन। इस प्रेम्धन को लाने वाले हैं -- श्री चैतन्य महाप्रभुजी व श्रीनित्यानन्द प्रभुजी, जो की और कोई नहीं बल्कि श्रीकृष्ण व श्रीबलराम ही हैं। -- वृजेन्द्रनन्दन येइ सचिसुत होइलो सेई, बलराम होइलो निताई। यह एक अद्भुत संकीर्तन है जो वृज के प्रेम से भरा है। उसी प्रेम की माला को श्रीगौरहरि ने धारण किया था। इस प्रेम को जगत को देने वाले हैं -- श्रीनिताई चांद। उनकी कृपा के बिना यह प्रेम प्राप्त करना संभव ही नहीं है। (हेन निताई बिने भाई, राधा-कृष्ण पाइते नाई)  अगर कोई श्रीगौरसुन्दर की कृपा को प्राप्त करना चाहता है, तो उसे श्रीनिताई चाँद की शरण लेनी ही पड़ेगी।
श्रील वृन्दावन दास ठाकुर जी ने लिखा कि श्रीमद् भागवतम् में जिस गोपी-भक्ति (गोपी प्रेम) की बात बताई गयी है, उस प्रेम को श्रीनिताई चाँद ने ही जगत् को प्रदान किया। श्रीनित्यानन्द-राम ने ही संसार को श्रीगौरसुन्दर का रहस्य बताया जिससे सभी उनके बारे में जान सके और जिस कृष्ण-प्रेम को वे लेकर आये थे, उसको प्राप्त कर सके।

नदिया में आने के उपरान्त श्रीनिताई चाँद ने ही गौड़ीय सम्प्रदाय की नींव रखी। उनके सहायक के रूप में उनके 12 विशिष्ट पार्षद उनके साथ रहे। जब श्रीगौरसुन्दर श्रीवास आँगन में श्रीकृष्ण-कीर्तन में मगन रहे, तब श्रीनित्यानन्द ने ही सबका ध्यान श्रीकृष्ण से हटाकर श्रीगौरकृष्ण की ओर मोड़ा। हालांकि सभी को यही संदेश प्रसारित हो रहा था कि श्रीकृष्ण की पूजा करो, उनके बारे में शिक्षा दो, उन्हीं का नाम लो, किन्तु श्रीनित्यानन्दजी ने निर्भीक स्वर से कहा -- भज गौरांग, कह गौरांग, लह गौरांगेर नाम रे। उन्होंने कहा श्रीगौरांग की पूजा करो, उनके बारे में बोलो, उन्हीं का नाम लो। अगर कोई उनकी बात मान कर ऐसा करेगा तो वे (श्रीनिताई) उसके यहाँ बिक जायेंगे। (ये जन गौरांग भजे, सेई आमार प्राण रे) अर्थात् जो श्रीगौरांग की पूजा करते हैं, वे मेरे जीवन-प्राण हैं। इसका सरल अर्थ यह है कि भाई! ये गौरांग ही श्रीकृष्ण हैं। अतः इन्हीं का भजन करो, अर्थात् उन्हें प्रसन्न करने की चेष्टा करो, और वे जैसा कहते हैंं, वैसा ही करो। 

श्रील वृन्दावन दास ठाकुर जी ने श्रीनित्यानन्द के नदिया आगमन बे बारे में विस्तृत रूप से लिखा है। श्रीनित्यानन्द जी का अगमन हुआ था 1509 में। उनके अद्भुत आचरण को कई बार भक्त समझ नहीं पाते थे, तो श्रीमहाप्रभु जी सारी बात समझाते थे। ग्वालबाल के भाव में मग्न उन पर कोई नियम लागु नहीं होता है। श्रीमहाप्रभुजी ही भक्तों को श्रीनित्यानन्द जी की उच्च भक्ति-क्रियायों का सार बता पाते थे। 

श्रीनित्यानन्द प्रभु की सर्वोच्चता व महानता, श्रीगौरांग महाप्रभुजी के अलावा कौन बता सकता है? 

श्रीवृन्दावन दास ठाकुर जी ने श्रीनित्यानन्द जी को अवधूत ही कहा है अर्थात् उन्हें अपने शरीर का भी आभास नहीं था। जब श्रीनित्यानन्द प्रभु और श्रीगौर महाप्रभु पहली बार मिले, तो श्रीहरिनाम संकीर्तन के दौरान, श्रीमहाप्रभुजी ने श्रीनित्यानन्द को गोद में उठा लिया था, अपने भक्तों को उनकी उच्च स्थिति के बारे में दिखाने के लिये। 

जब उनकी पहली मुलाकात हुई श्रीनित्यानन्द-राम 35 वर्ष के थे और श्रीमहाप्रभुजी 23 वर्ष के। श्रीनित्यानन्द प्रभु श्रीमहाप्रभु से पहले इस जगत में अवतरित हुए और उनके बाद अपने धाम को लौटे। श्रीमहाप्रभु ने श्रीनित्यानन्द के नदिया में आने के बाद बहुत जल्दी संन्यास लीला की थी। उस थोड़े से समय में ही श्रीनित्यानन्द राम जी ने अपने पार्षदों को इकट्ठा किया, जिन्होंने बंगाल में गौड़ीय सम्प्रदाय की नींव रखी।
http://www.vina.cc/2018/01/31/sri-nitaicanda/
By Swami B.V. Tripurari, excerpted from his forthcoming book, Friends Forever: Sakhya-rati of Uttama-Bhakti, for the occasion of Nityanada Trayodasi.

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