

आपकी पत्नी आपको इतनी शीघ्रता से अन्दर आता देख बोली -- 'अभी-अभी तो आप स्नान करने गये थे, और इतनी जल्दी आप वापिस कैसे आ गये?'
जयदेव रूपी भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया -- 'जाते-जाते एक बात मन

जयदेव रूपी भगवान श्रीकृष्ण ने भीतर जाकर, उन लिखे हुए पन्नों पर 'देहि पद पल्लवमुदारं' --- लिख कर कर उस श्लोक को पूरा कर दिया।
कमरे से बाहर आ कर जयदेव रूपी भगवान श्रीकृष्ण ने कहा --' अच्छा बहुत भूख लगी है। खाने के लिए कुछ है ? '
श्रीमती पद्मावती जी ने आसन बिछाया, आपको बिठाया और ठाकुर को अर्पित किया हुआ भोग, आपके आगे सजाया। भगवान रूपी जयदेव उसे

परम भक्त जयदेव जी सब समझ गये। आप शीघ्रता से घर के भीतर गये
। आपका सारा ध्यान उस अधूरे श्लोक की ओर था जिसे आप आधा लिखा छोड़ कर गये थे। आप अपनी पोथी खोल कर दिव्य अक्षरों का दर्शन करने लगे। रोमांच हो आया आपको तथा प्रेमावेश में आपका हृदय उमड़ आया। आपकी आँखों से अश्रु-धारायें प्रवाहित होने लगीं। आपने अपनी पत्नी से कहा --'पहले मैं नहीं आया था, मेरे रूप में श्रीकृष्ण आये और उन्होंने वो श्लोक पूरा किया। तुम धन्य हो, तुम्हारा जीवन सार्थक है। तुमने श्रीकृष्ण का दर्शन किया और अपने हाथों से भोजन करवाया।'
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