इस द्वीप का वर्तमान नाम 'गादिगाछा' है।
यह कीर्तन भक्ति का क्षेत्र है।
द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण ने इन्द्र की पूजा को बन्द करवाकर श्रीगोवर्धन की पूजा प्रारम्भ की थी तब इन्द्र बहुत क्रोधित हुआ था। उसके गुस्से में व्रजवासियों का विनाश करने के लिए सात दिन तक डरावनी व कड़कती बिजली के साथ हाथी की सूँड के समान मोटी धारा वाली वर्षा की थी।
उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन-धारण कर व्रजवासियों की रक्षा
कर, इन्द्र के अभिमान को नष्ट किया था।
श्रीकृष्ण-चरणों में इस अपराध से छुटकारा पाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की थी। श्रीकृष्ण ने उसे अभय-दान दिया।
इन्द्र का भय फिर भी बना रहा। उसने सुरभि गाय से कहा --'मैं, श्रीकृष्ण लीला समझ नहीं सका। सुना है कि श्रीकृष्ण कलियुग में प्रकट होकर नदीया में अद्भुत लील करेंगे। उस समय मैं फिर से गलती न कर बैठूँ, इसलिये तुम इसका अभी से प्रबन्ध करो।'
सुरभि ने इन्द्र से कहा -- 'चलो, श्रीनवद्वीप में जाकर , श्रीनिमाई का भजन करेंगे।'
देवराज इन्द्र ने सुरभि गाय के साथ नवद्वीप में आकर श्रीगौरांग देव जी का भजन किया था।
श्रीगौरांग देव ने उनके सम्मुख आविर्भूत होकर कहा --' मैं तुम्हारी सभी इच्छाओं को जानता हूँ । अभी मेरे प्रकट होने में कुछ दिन बाकी हैं। तुम नदिया नगर में, मुझे अच्छी तरह से देखोगे। उस लीला में तुम मेरी सेवा करोगे और तुम माया के वशीभूत नहीं होओगे ।' इतना कह कर भगवान अन्तर्धान हो गये।
सुरभि देवी ने भी एक पीपल के पेड़ के समीप रहकर भगवान श्रीगौरांग महाप्रभु जी की प्रतीक्षा की थी।
गो का अर्थ है गाय तथा द्रुम का अर्थ है पेड़ ।
यहाँ पर सुरभि गाय और पीपल वृक्ष एक साथ रहे, अतः गो और द्रुम इन शब्दों के समावेश से इस स्थान का नाम गोद्रुम हुआ।
श्रीनित्यानन्द प्रभु जी ने श्रीजीव गोस्वामी को बताया था की यहाँ पर सुरभि गाय निरन्तर रहती है।
श्रीगोद्रुम धाम की जय !!!!
धाम-वासी भक्तवृन्द की जय !!!!
यह कीर्तन भक्ति का क्षेत्र है।
द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण ने इन्द्र की पूजा को बन्द करवाकर श्रीगोवर्धन की पूजा प्रारम्भ की थी तब इन्द्र बहुत क्रोधित हुआ था। उसके गुस्से में व्रजवासियों का विनाश करने के लिए सात दिन तक डरावनी व कड़कती बिजली के साथ हाथी की सूँड के समान मोटी धारा वाली वर्षा की थी।
उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन-धारण कर व्रजवासियों की रक्षा
श्रीकृष्ण-चरणों में इस अपराध से छुटकारा पाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की थी। श्रीकृष्ण ने उसे अभय-दान दिया।
इन्द्र का भय फिर भी बना रहा। उसने सुरभि गाय से कहा --'मैं, श्रीकृष्ण लीला समझ नहीं सका। सुना है कि श्रीकृष्ण कलियुग में प्रकट होकर नदीया में अद्भुत लील करेंगे। उस समय मैं फिर से गलती न कर बैठूँ, इसलिये तुम इसका अभी से प्रबन्ध करो।'
सुरभि ने इन्द्र से कहा -- 'चलो, श्रीनवद्वीप में जाकर , श्रीनिमाई का भजन करेंगे।'
देवराज इन्द्र ने सुरभि गाय के साथ नवद्वीप में आकर श्रीगौरांग देव जी का भजन किया था।
श्रीगौरांग देव ने उनके सम्मुख आविर्भूत होकर कहा --' मैं तुम्हारी सभी इच्छाओं को जानता हूँ । अभी मेरे प्रकट होने में कुछ दिन बाकी हैं। तुम नदिया नगर में, मुझे अच्छी तरह से देखोगे। उस लीला में तुम मेरी सेवा करोगे और तुम माया के वशीभूत नहीं होओगे ।' इतना कह कर भगवान अन्तर्धान हो गये।
सुरभि देवी ने भी एक पीपल के पेड़ के समीप रहकर भगवान श्रीगौरांग महाप्रभु जी की प्रतीक्षा की थी।
गो का अर्थ है गाय तथा द्रुम का अर्थ है पेड़ ।
यहाँ पर सुरभि गाय और पीपल वृक्ष एक साथ रहे, अतः गो और द्रुम इन शब्दों के समावेश से इस स्थान का नाम गोद्रुम हुआ।
श्रीनित्यानन्द प्रभु जी ने श्रीजीव गोस्वामी को बताया था की यहाँ पर सुरभि गाय निरन्तर रहती है।
श्रीगोद्रुम धाम की जय !!!!
धाम-वासी भक्तवृन्द की जय !!!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें