रविवार, 25 फ़रवरी 2018

नवद्वीप धाम के अन्तर्गत -- श्रीसीमन्त द्वीप

यह श्रवण - भक्ति की साधना का क्षेत्र है।इस स्थान पर श्रीमती पार्वती देवी जी ने श्रीकृष्ण जी के गौर - रूप के दर्शन किये थे। उन्होंने श्रीगौरांग महाप्रभु जी के पादपद्मों में प्रणाम के समय श्रीगौर के चरणों की धूल को अपने सिर की मांग कें धारण किया था। 

स्त्रियाँ अपने केशों के मध्य में जहाँ माँग भरती हैं, उसे सीमन्त भी कहते हैं। इसीलिये इस स्थान का नाम सीमन्त-द्वीप हुआ।

श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी ने अपनी रचना श्रीनवद्वीपधाम - माहात्म्य में 
लिखा है की, श्रीनित्यानन्द जी बताते हैं कि किसी सत्ययुग में श्री महादेव जी श्रीगौरांग-श्रीगौरांग कह कर बहुत नृत्य कर रहे थे। श्रीमहादेव जी को ऐसे देख, श्रीमती पार्वती देवी जी  ने जिज्ञासा की -- 'हे देव! श्रीगौरांग देव कौन हैं? उनका नाम सुन कर मेरा मन प्रेम से द्रवित हुआ जा रहा है । कैसे मैं उनका भजन करूँ । कुछ बताइये ।'


श्रीपशुपतिताथ जी बोले -- ' हे देवी, तुम आद्याशक्ति, श्रीराधा जी का अंश हो । इस बार कलियुग में भगवान श्रीकृष्ण, श्रीराधा जी का भाव लेकर, श्रीमायापुर में, श्रीमती शची माता के यहाँ अवतार लेंगे। श्री गौरमणि प्रभु, कीर्तन रंग में मत्त होकर पात्र-अपात्र का विचार न करके, प्रेम-धन वितरण करेंगे। मैं तो प्रभु की प्रतिज्ञा को स्मरण करके प्रेम में विभोर हो जाता हूँ। इसलिये मैं काशी छोड़कर श्रीमायापुर के एक कोने में गंगा के किनारे कुटिया बनाकर श्रीगौरांग महाप्रभु जी का भजन करूँगा।'

ऐसी बात सुनकर श्रीमती पार्वती जी सीमन्त द्वीप आ गईं । वहाँ वे श्रीगौरांग रूप का सदा चिन्तन करतीं एवं श्रीगौर नाम का कीर्तन करते-

करते प्रेम में विभोर हो जातीं। 

कुछ दिन बाद श्रीगौरचन्द्र ने कृपा करके अपने पार्षदों के साथ श्रीमती पार्वती जी को दर्शन दिया। उस समय उन्होंने कातरता से भगवान श्रीगौरहरि की पद-धूली अपनी माँग में धारण कर ली थी।

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