श्रील लोचन दास ठाकुर जी ने सन् 1537 ई में 'चैतन्य मंगल' ग्रन्थ लिखा था। ऐसा कहा जाता है कि श्रील लोचन दास ठाकुर जी ने अपने घर में फूल के वृक्ष के नीचे एक पत्थर के ऊपर बैठकर 'चैतन्य मंगल' नामक ग्रन्थ लिखा था।
आपने इसके अलावा -- 'प्रार्थना, दुर्लभसार, पदावली, जगन्नाथ-बल्लभ नाटक तथा रासपन्चाध्यायी का पद्यानुवाद' भी लिखा था।
'चैतन्य मंगल' लिखने के बाद आपके मन में विचार आया कि इस ग्रन्थ में श्रीनित्यानन्द जी की महिमा पूरी तरह से वर्णन नहीं हो पायी। इस आशंका से आपने श्रीनित्यानन्द महिमा सूचक गीतियाँ भी लिखीं।
उनमें से एक यह है --
'अक्रोध परमानन्द नित्यानन्दराय ।
अभिमान शून्य निताई नगरे बेड़ाय॥
अधम पतित जीवेर द्वारे-द्वारे गिया।
हरिनाम महामन्त्र देन बिलाइया॥
यारे देखे तारे कहे दन्ते तृण करि'।
आमारे किनिया लह भज गौरहरि॥
एत बलि नित्यानन्द भूमे गड़ि याय।
सोनार पर्वत येन धूलाते लोटाय ॥
हेन अवतारे यार रति ना जन्मिल।
लोचन बले सेइ पापी एल आर गेल॥'
अर्थात्,
क्रोध रहित एवं परमानन्द से भरे श्रीनित्यानन्द प्रभु जी अभिमान शून्य होकर नगर में भ्रमण कर रहे हैं।
आप पतित जीवों के घर-घर (द्वार-द्वार) पर जाकर हरे कृष्ण महामन्त्र बाँटते फिर रहे हैं।
आप जिनको भी देखते हैं उससे दाँतों में तिनका लेकर अर्थात् अत्यन्त दीनता से कहते हैं कि आप गौरहरि का भजन करो और मुझे खरीद लो। मैं आपके सभी काम करूँगा।
इतना कह कर श्रीनित्यानन्द प्रभु प्रेमानन्द में विभोर होकर ज़मीन पर लोट-पोट होने लगते हैं। तब ऐसा लगता है कि मानो सोने का पर्वत ज़मीन पर लोट-पोट हो रहा हो।
इस प्रकार के अवतार में जिसकी प्रीति उदित नहीं हुई, श्रीलोचन दास ठाकुर जी कहते हैं कि उसकी ज़िन्दगी बेकार है। वह पापी तो समझो, आया और गया।
श्रील लोचन दास ठाकुर की जय !!!!!
आपके तिरोभाव तिथि पूजा महामहोत्सव की जय !!!!!
आपने इसके अलावा -- 'प्रार्थना, दुर्लभसार, पदावली, जगन्नाथ-बल्लभ नाटक तथा रासपन्चाध्यायी का पद्यानुवाद' भी लिखा था।
'चैतन्य मंगल' लिखने के बाद आपके मन में विचार आया कि इस ग्रन्थ में श्रीनित्यानन्द जी की महिमा पूरी तरह से वर्णन नहीं हो पायी। इस आशंका से आपने श्रीनित्यानन्द महिमा सूचक गीतियाँ भी लिखीं।
उनमें से एक यह है --
'अक्रोध परमानन्द नित्यानन्दराय ।
अभिमान शून्य निताई नगरे बेड़ाय॥
अधम पतित जीवेर द्वारे-द्वारे गिया।
हरिनाम महामन्त्र देन बिलाइया॥
यारे देखे तारे कहे दन्ते तृण करि'।
आमारे किनिया लह भज गौरहरि॥
एत बलि नित्यानन्द भूमे गड़ि याय।
सोनार पर्वत येन धूलाते लोटाय ॥
हेन अवतारे यार रति ना जन्मिल।
लोचन बले सेइ पापी एल आर गेल॥'
अर्थात्,
क्रोध रहित एवं परमानन्द से भरे श्रीनित्यानन्द प्रभु जी अभिमान शून्य होकर नगर में भ्रमण कर रहे हैं।
आप पतित जीवों के घर-घर (द्वार-द्वार) पर जाकर हरे कृष्ण महामन्त्र बाँटते फिर रहे हैं।
आप जिनको भी देखते हैं उससे दाँतों में तिनका लेकर अर्थात् अत्यन्त दीनता से कहते हैं कि आप गौरहरि का भजन करो और मुझे खरीद लो। मैं आपके सभी काम करूँगा।
इतना कह कर श्रीनित्यानन्द प्रभु प्रेमानन्द में विभोर होकर ज़मीन पर लोट-पोट होने लगते हैं। तब ऐसा लगता है कि मानो सोने का पर्वत ज़मीन पर लोट-पोट हो रहा हो।
इस प्रकार के अवतार में जिसकी प्रीति उदित नहीं हुई, श्रीलोचन दास ठाकुर जी कहते हैं कि उसकी ज़िन्दगी बेकार है। वह पापी तो समझो, आया और गया।
श्रील लोचन दास ठाकुर की जय !!!!!
आपके तिरोभाव तिथि पूजा महामहोत्सव की जय !!!!!
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