शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

जब कालीदेवी ने ध्यानचन्द्र जी का पक्ष लिया

एक बार श्रीध्यानचन्द्र गोस्वामीजी झारिखण्ड के मार्ग से वृन्दावन आ रहे थे तो तत्कालीन राजा के कर्मचारियों ने इस मार्ग पर चलते एक व्यक्ति को कालीदेवी पर विधिपूर्वक बलि चढ़ाने के लिए पकड़ लिया।
इनके मना करने पर भी वे इन्हें मन्दिर में ले गये।

दूसरे दिन सवेरे ही बलि दी जानी थी।

रात्रि को आपने काली देवी के मस्तक पर पादाकृत तिलक लगाया और कान में अष्टादशाक्षर मन्त्र सुनाया, मानों दीक्षित कर शिष्यत्व प्रदान कर दिया।
कालीदेवी ने रात को ही राजा को स्वपन में आदेश दिया कि पकड़े हुए व्यक्ति मेरे दीक्षा-गुरु हैं, साथ वाला व्यक्ति उनका कृपापात्र है। अतः दोनों को सादर मुक्त कर दिया जाये, वरना तुम्हें समस्त राजपाट, परिवार के साथ मैं ध्वंस कर दूँगी।

राजा ने प्रातः काल इनका पूजन किया और परिवार सहित इनके शिष्य हो गये तथा वैष्णव-धर्म को ग्रहण कर कृतार्थ हुये।

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