गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

आपका जीवन भी है कष्टों से त्रस्त, बिना कुछ खर्च किए करें ये काम

भगवान जगन्नाथ जी से हमारा गहरा सम्बन्ध है, नित्य सम्बन्ध है, वास्तविक सम्बन्ध है, सुन्दर सम्बन्ध है, आनन्दायक सम्बन्ध है। 
वे हैं जगन्नाथ्। जगत के नाथ, संसार के मालिक, सारे संसार वासियों के मालिक्। 
हम हैं संसार के वासी। इस नाते वे हमारे कर्ता-धर्ता, स्वामी , मालिक हैं। 
जगन्नाथजी और हमारा गहरा सम्बन्ध है। वे हमारे नित्य प्रभु हैं, हम उनके नित्य दास हैं। चाहे हम मानव बनें, चाहे देवता, चाहे कीट-पतंग, कोई भी जनम हो, वे हमारे नित्य प्रभु हैं, हमारे नाथ हैं और हम उनके नित्य दास हैं। 

इसीलिये जगन्नाथजी दोनों बाज़ू पसार कर खड़े हैं जैसे एक माँ अपने बच्चे को बुलाती है -- आजा, आजा। बच्चे को माँ की गोद में सबसे ज्यादा सुख मिलता है, सुकून मिलता है, शान्ति मिलती है। 
इसी प्रकार भगवान जगन्नाथजी दोनों बाज़ू पसार कर हमें बुला रहे हैं - मेरे बच्चो, मेरी बच्चियों, मेरे पास आओ। क्यों इस संसार में भटक रहे हो, कामना-वासना के दलदल में फंसे हो, आध्यात्मिक-आदिभैतिक-आदिदैविक क्लेशों परेशान हो रहे हो। मेरे पास आओ।  सुकून भरी ज़िन्दगी जीयो। तुम मेरे हो, मेरे पास आओ। मेरे पास तुम्हें आनन्दमय ज़िन्दगी मिलेगी, परम सुख मिलेगा।
 श्रीगीता जी में भगवन श्रीकृष्ण अर्जुन को यही कहते हैं - तुम भगवान कि शरण लो। अवश्य ही उनकी शरण लो। भगवान से नहीं कह रहे की शरण लेनी चाहिये, बल्कि कह रहे हैं शरण में चला जा। 

सारी शंकाओं को छोड़ कर, सारे भ्रमों को छोड़ कर भगवान की शरण में चला जा। इससे भगवान की कृपा मिलेगी। उससे परम शान्ति मिलेगी, यह जन्म-मृत्यु का चक्कर खत्म हो जायेगा, यह जो भटकना है यह खत्म हो जायेगा। भगवान का शाश्वत धाम मिलेगा। वहाँ नित्य जीवन मिलेगा, अगर भगवान जगन्नाथ की शरण में जायेगा तो। क्योंकि तू उनका है, उनका था, और जब उनका बन के रहेगा तो परम सुख मिलेगा।
 भगवान जगन्नाथजी से हमारा गहरा सम्बन्ध था, उनसे ही नित्य सम्बन्ध रहेगा। जब हम उनको भुला देंगे तो हमें सभी प्रकार कष्ट सताते रहेंगे। वे हमारे नित्य प्रभु हैं, हमारे लिये ही हमें बुला रहे हैं कि तुम मेरे बच्चे हो, मेरे पास आओ, इधर-उधर क्यों भटक रहे हो।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें