
आपने इसके अलावा -- 'प्रार्थना, दुर्लभसार, पदावली, जगन्नाथ-बल्लभ नाटक तथा रासपन्चाध्यायी का पद्यानुवाद' भी लिखा था।

उनमें से एक यह है --
'अक्रोध परमानन्द नित्यानन्दराय ।
अभिमान शून्य निताई नगरे बेड़ाय॥
अधम पतित जीवेर द्वारे-द्वारे गिया।
हरिनाम महामन्त्र देन बिलाइया॥
यारे देखे तारे कहे दन्ते तृण करि'।
आमारे किनिया लह भज गौरहरि॥
एत बलि नित्यानन्द भूमे गड़ि याय।
सोनार पर्वत येन धूलाते लोटाय ॥
हेन अवतारे यार रति ना जन्मिल।
लोचन बले सेइ पापी एल आर गेल॥'
अर्थात्,
आप पतित जीवों के घर-घर (द्वार-द्वार) पर जाकर हरे कृष्ण महामन्त्र बाँटते फिर रहे हैं।
आप जिनको भी देखते हैं उससे दाँतों में तिनका लेकर अर्थात् अत्यन्त दीनता से कहते हैं कि आप गौरहरि का भजन करो और मुझे खरीद लो। मैं आपके सभी काम करूँगा।

इस प्रकार के अवतार में जिसकी प्रीति उदित नहीं हुई, श्रीलोचन दास ठाकुर जी कहते हैं कि उसकी ज़िन्दगी बेकार है। वह पापी तो समझो, आया और गया।
श्रील लोचन दास ठाकुर की जय !!!!!
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