सोमवार, 10 अगस्त 2015

इस एकादशी के प्रभाव से मानव समस्त प्रकार के पापों से अलग हो जाता है।

संसार की सृष्टि करने वाले ब्रह्माजी बताते हैं कि सावन के महीने की कृष्ण-पक्ष की एकादशी का नाम कामिका एकादशी है।

इस महीने की एकादशी की महिमा सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।

इस दिन शंख़, चक्र, गदा व पद्म धारी भगवान विष्णुजी की पूजा अवश्य करनी चाहिये।

महातीर्थ गंगा, काशी, नैमिषारण्य और पुष्करराज में वास और स्नान का जो फल होता है, वह इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा से मिलता है। 
केदारनाथ तथा कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय स्नान करने पर जो फल मिलता है वह सब इस एकादशी को भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से मिल जाता है।

जिस प्रकार कमल के पत्ते से जल अलग रहता है, उसी प्रकार मानव भी इस एकादशी के प्रभाव से समस्त प्रकार के पापों से अलग हो जाता है।

भगवान की पूजा करते समय उनके चरणों में तुलसी का पत्ता अवश्य चढ़ाना चाहिये तथा भगवान को भोग अर्पित करते समय प्रत्येक व्यन्जन में भी तुलसीजी का पत्ता अवश्य अर्पण करना चाहिये क्योंकि तुलसीजी भगवान को बहुत प्रिय हैं। तुलसीजी के माध्यम से पूजा करने वाले को भगवान का आशीर्वाद मिलता है।

तुलसीजी के दर्शन करने से ही समस्त प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा पवित्र तुलसीजी को स्पर्श करने मात्र से शरीर पवित्र हो जाता है।

यही नहीं, भगवान की अति प्रिय तुलसी जी की वन्दना करने से शरीर के सारे रोग समाप्त हो जाते हैं।
तुलसी वृक्ष को जल चढ़ाने से यमराजजी भी भयभीत हो जाते हैं तथा तुलसीजी के वृक्ष को लगाने से भगवान श्रीकृष्ण के समीप वास मिलता है।

भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में तुलसी पत्ता समर्पण करने से श्रीकृष्ण-भक्ति प्राप्त होती है।

जो ऐसी महान फल देने वाली तुलसीजी को नमस्कार करता है व एकादशी वाले दिन तुलसीजी को दीपदान करता है, उसका पुण्य चित्रगुप्त भी लिख कर पूरा नहीं कर सकते।

ब्रह्म-हत्या आदि पाप इस 'कामिका एकादशी' का व्रत करने से नष्ट हो जाते हैं, यहाँ तक कि श्रद्धापूर्वक इस व्रत का महात्म्य को पढ़ने व सुनने से विष्णु-लोक में गति होती है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें