सोमवार, 3 अगस्त 2015

क्या आपका भगवान हाथी को सुई के छेद में इस पार से उस पार कर सकता है?

अखिल भारतीय श्री चैतन्य गौड़ीय मठ के संस्थापक आचार्य श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी एक बार भगवद् वाणी प्रचार में बंगाल-देश गये। वहाँ पर एक विशाल धर्म-सभा का आयोजन हुआ। श्रील महाराजजी ने प्रवचन से पहले कहा कि अगर किसी को कोई प्रश्न हो तो वो उसे अपने पास नोट करके रख ले, सभा के बाद उस पर चर्चा करेंगे। इतना कहकर उन्होंने अपना प्रवचन प्रारम्भ कर दिया। लगभग आधे घंटे के बाद, सभा के बीच में ही एक व्यक्ति उठा और बोला - जो यह आप बुत परस्तवाद या मूर्ति पूजा की बात बोल रहे हैं, उसकी क्या युक्ति है? 
श्रील महाराजजी ने अपना प्रवचन बीच में ही रोक दिया और इससे पहले की कोई अन्य उस व्यक्ति को रोके, महाराजजी ने कहा - बहुत अच्छा प्रश्न है। और फिर उन साहब से पूछा - महाश्य ! आप खुदा या भगवान को मानते हैं या नहीं?
उन साहब ने उत्तर दिया - निश्चय ही मानता हूँ। 

महाराजजी - भगवान या खुदा की कोई शक्ति है?

उत्तर - भगवान सर्व-शक्तिमान हैं।

महाराजजी उनका उत्तर सुन कर हँस पड़े और बोले कि आपने अपने प्रश्न का उत्तर स्वयं ही दे दिया।

'सर्वशक्तिमान' के गम्भीर तात्पर्य को न समझने के कारण वो व्यक्ति समझ नहीं पाया कि उसके प्रश्न का उत्तर कैसे हो गया?

उसकी चुप्पी देखकर महाराजजी बोले - कपड़े सिलने वाली एक छोटी सुई के छेद में से (जिसके अन्दर 90 नम्बर का धागा भी सुगमता से न घुस पाता हो) क्या आप का खुदा इस इलाके के सबसे बड़े हाथी को इस पार से उस पार तथा उस पार से इस पार ला सकता है या नहीं? बशर्ते कि हाथी के शरीर में ज़रा सा भी ज़ख्म न होने पाये, उसका एक बाल भी न टूटे।

उस व्यक्ति को चुप देखकर महाराजजी आगे बोले - आपके भगवान में कितनी शक्ति है, मैं नहीं जानता, लेकिन जिनको मैं भगवान मानता हूँ, उनके लिये सब कुछ सम्भव है।

कर्तुमकर्तुमन्यथाकर्तुं यः समर्थः स एव ईश्वरः

भगवान सर्वसमर्थ हैं। वे सब कुछ कर सकते हैं। वे किये हुए को उलटा कर सकते हैं, उलटे किये हुये को फिर पलट सकते हैं। उन सर्वशक्तिमान के लिये कुछ भी असम्भव नहीं है। सर्वशक्तिमान सब कुछ करने में समर्थ हैं। हम जो जो शक्ति भगवान में स्थापित करेंगे, उस उस शक्ति से भगवान युक्त होंगे अर्थात् सिर्फ वही-वही शक्ति यदि भगवान में होगी तो ऐसे में उन्हें सर्वशक्तिमान नहीं कह सकते हैं। 
वास्तविकता यह है कि हमारी कल्पना के अन्दर और बाहर समस्त शक्ति वाले तत्व को ही सर्वशक्तिमान कह सकते हैं। और जब भगवान को सर्वशक्तिमान मान लिया तो वे यह कार्य कर सकते हैं और यह कार्य नहीं कर सकते हैं, ऐसी बात कहने का हमारा अधिकार ही नहीं है।

सर्वशक्तिमान भगवान अपने भक्त की इच्छा को पूरा करने के लिये जिस किसी मूर्ति को धारण करके अर्थात् किसी भी स्वरूप को धारण करके, किसी भी स्थान पर आ सकते हैं। यदि हम कहें कि वे ऐसा नहीं
कर सकते तो उन्हें सर्व-शक्तिमान कहना निरर्थक होगा। 

मनुष्य कर्ता रूप से मिट्टी द्वारा, धातु द्वारा जो निर्माण करता है, वह बुत होता है। सनातन धर्म में बुत पूजा की व्यवस्था नहीं है। 

सनातन धर्म में 'श्रीविग्रह' की आराधना करते हैं। भक्त के प्रेम के वशीभूत होकर सर्व-शक्तिमान भगवान जो विशेष मूर्ति ग्रहण करते हैं,
उसे श्री-विग्रह कहते हैंं।

श्रीविग्रह और बुत में ज़मीन-आसमान का अन्तर होता है। बुत पंचमहाभूत का बना होता है जबकि विग्रह चेतन होता है, सच्चिदानन्द होता है।

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