मंगलवार, 30 दिसंबर 2014

ब्रह्मा ने सृष्टि की उत्पत्ति क्यों की?

जब किसी राज्य का या देश का निर्माण किया जाता है, तो वहाँ पर रहने वालों के लिए हर तरह की सुविधाओं के लिये योजनायें बनाई जाती हैं। साथ ही क्या क्या समस्यायें आ सकती हैं और उनका समाधान क्या है उनके बारे में सोचा जाता है, जैसे लम्बे समय तक बारिश न हो, तो खेतों मे सिंचाई कैसे होगी?, अथवा रहने वालों की आपस में किसी
प्रकार की बहस हो जाती है तो उसके समाधान के लिए कोर्ट का इन्तज़ाम किया जाता है। दुष्ट प्रकृति के लोग सज्जन लोगों को न सतायें उसके लिये पुलिस की व्यवस्था की जाती है, कारागार की व्यवस्था की जाती है, इत्यादि इत्यादि। 

इसी तरह इस ससार के मूल सृष्टि कर्ता अथवा अनगनित संसारों के सृष्टिकर्ता तो भगवान हैं । और वे भी संसार के लोगों के रहने के लिये विभिन्न प्रकार की व्यवस्थायें करते हैं और सभी कार्य सुचारु रूप से चलें उसके लिये अलग अलग विभाग बना देते हैं जिसमें अलग-अलग को अलग-अलग जिम्मेवारियां प्रदान
करते हैं। भगवान की जो व्यवस्थायें हैं, उन व्यवस्थाओं में एक व्यवस्था है कि जो लोग भगवान के संविधान को नहीं मानते या उसके विरुद्ध चलते हैं, उनके लिए भगवान सुधार गृह  या दण्डागार अथवा कारागार की व्यवस्था करते हैं। जिसकी सृष्टि का कार्य भगवान ब्रह्मा जी को सौंपते हैं।                        

आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाये तो यह संसार भगवान को न मानने वालों, उनकी सेवा न करने वालों या उनके संविधान के विरुद्ध चलने वालों के लिये कारागार स्वरूप है या सुधार गृह स्वरूप है। यही कारण है कि इस, कारागार रूपी संसार में हर एक प्राणी परेशान है। क्योंकि वो एक तरह से भगवान के दण्डागार में है।                                                 
जीवों को सही रास्ता दिखाने के लिये , उन्हें संविधान के अनुकूल चलाने के लिये, अथवा जीवों को उनका वास्तविक कर्तव्य बताने के लिये कभी-कभी भगवान इस जगत में अवतरित होते हैं तो कभी- कभी अपने निज-जनों को इस संसार में भेजते रहते हैं। जो जो प्राणी भगवन के आदेशों को मानकर उनके उपदेशों को समझ कर अथवा उनके निज-जन शुद्ध भक्तों के पद चिन्हों पर चलते हुये, अपने जीवन को सुधारता है, उन्हें भगवान इस कारागार से मुक्त कर देते हैं। जैसे कि
भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं --

तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत । 
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्॥ 
(श्रीमद् भगवद् गीता - 18/62)

कहने का तात्पर्य भगवान कि इच्छा से ब्रह्मा जी भगवद् विमुख लोगों के लिये सुधार गृह अथवा कारागार की तरह इस संसार की सृष्टि करते हैं।

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