श्रील कविराज गोस्वामी जी ने लिखा है कि उन्होंने श्रीनित्यानन्द पार्षद मीनकेतन रामदास जी का पक्ष लेकर अपने भाई को जो डाँटा, उसी सामान्य गुण के आधार पर ही श्रीमन्नित्यानन्द प्रभु जी ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिये एवं वृन्दावन जाने के लिये आदेश दिया।
भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की अन्तिम लीला का श्रवण करने के लिये अत्यधिक व्याकुल वृन्दावनवासी गौरगत प्राण भक्तों ने श्रील कविराज गोस्वामी जी से उन तमाम लीलाओं का वर्णन करने के लिये विशेष रूप से अनुरोध किया। शुद्ध भक्तों के अनुरोध करने पर श्रील कविराज गोस्वामी जी ने भक्तों की इच्छा
को पूर्ण करने के लिये स्वयं भगवान श्रीमदनगोपाल जी से आज्ञा ली। प्रभु के चरणों में कविराज गोस्वामी जी द्वारा आज्ञा मांगते ही सब वैष्णवों ने देखा कि सभी के सामने भगवान श्रीमदनगोपाल जी के गले से माला गिर पड़ी। भगवान के गले से माला गिरते ही सभी वैष्णव एक साथ हरि-ध्वनि कर उठे तथा मंदिर के श्रीगोसांई दास पुजारी ने वही माला लाकर श्रील कविराज गोस्वामी पाद जी के गले में पहना दी। भगवान की उस आज्ञा माला को पहन कर श्रील कविराज गोस्वामी जी ने परमानन्द से ग्रन्थ लिखना प्रारम्भ कर दिया, जो श्री चैतन्य चरितामृत कहलाया।
भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की अन्तिम लीला का श्रवण करने के लिये अत्यधिक व्याकुल वृन्दावनवासी गौरगत प्राण भक्तों ने श्रील कविराज गोस्वामी जी से उन तमाम लीलाओं का वर्णन करने के लिये विशेष रूप से अनुरोध किया। शुद्ध भक्तों के अनुरोध करने पर श्रील कविराज गोस्वामी जी ने भक्तों की इच्छा
को पूर्ण करने के लिये स्वयं भगवान श्रीमदनगोपाल जी से आज्ञा ली। प्रभु के चरणों में कविराज गोस्वामी जी द्वारा आज्ञा मांगते ही सब वैष्णवों ने देखा कि सभी के सामने भगवान श्रीमदनगोपाल जी के गले से माला गिर पड़ी। भगवान के गले से माला गिरते ही सभी वैष्णव एक साथ हरि-ध्वनि कर उठे तथा मंदिर के श्रीगोसांई दास पुजारी ने वही माला लाकर श्रील कविराज गोस्वामी पाद जी के गले में पहना दी। भगवान की उस आज्ञा माला को पहन कर श्रील कविराज गोस्वामी जी ने परमानन्द से ग्रन्थ लिखना प्रारम्भ कर दिया, जो श्री चैतन्य चरितामृत कहलाया।


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