सोमवार, 14 अक्टूबर 2013

भगवान के दर्शन - कैसे कैसे?

श्रीकृष्ण ही स्वयं भगवान हैं। वे सबके आश्रय हैं। सभी शास्त्रों में कृष्ण को ही परम-ईश्वर -- सर्व-ईश्वरों का ईश्वर कहा गया है। श्रीकृष्ण अद्वय-ज्ञान तत्त्व वस्तु हैं; यही उनका स्वरूप है। फिर भी उन अद्वय-ज्ञान वस्तु कृष्ण के तीन रूप हैं - ब्रह्म, परमात्मा और भगवान्।                                                                          वेद, उपनिषद् और भागवत आदि पुराणों तथा आगमों में कृष्ण को ही पूर्ण तत्त्व कहा गया है। उनमें ऐसा कहा गया है कि न तो उनके समान दूसरा तत्त्व है और न श्रीकृष्ण से बढ़कर कुछ है। वे कृष्ण ही स्वयं-भगवान हैं, उनकी अंगकान्ति अथवा अंग-ज्योति को निर्विशेष ब्रह्म  कहते हैं तथा जगत् के प्रत्येक जीव के अन्तर्यामी एवं साक्षी के रूप में स्थित भगवान के अंश ही परमात्मा हैं।                                                                                                                                                                                           भगवद्भक्तजन विशुद्ध भक्ति योग का अवलम्बन कर भगवान के
सच्चिदानन्द श्रीविग्रह का दर्शन करते हैं। ज्ञानीजनों की आँखें भगवान के अंग की ज्योति से चकाचौंध हो जाने के कारण भगवान के श्रीविग्रह को देखने में असमर्थ होती हैं। जिस प्रकार सूर्य का आकार रहने पर भी साधारण मनुष्य उनके रूप को प्रखर ज्योति के कारण नहीं देख पाता, परन्तु देवता लोग सूर्य को साकार देखते हैं, उसी प्रकार ज्ञानीजन के भगवद् विग्रह का दर्शन करने में असमर्थ होने पर भी भगवद्-भक्त-गण भक्ति के प्रभाव से भगवान के सच्चिदानन्द विग्रह का दर्शन करते हैं।                                                                                                             जो लोग ज्ञान-मार्ग से परतत्त्व का भजन करते हैं, वे उनको ब्रह्म-रूप में दर्शन करते हैं। जो लोग योग-मार्ग से उनकी उपासना करते हैं, वे उनको
परमात्मा के रूप में अनुभव करते हैं। भगवद् - दर्शन पूर्ण दर्शन है। ब्रह्म-दर्शन तथा परमात्मा-दर्शन खण्ड-दर्शन है ।
- श्रील भक्ति विनोद ठाकुर

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