पर-तत्त्व के विषय में यदि आलोचना कीजाये तो हम
पायेंगे कि श्रीकृष्ण ही पर-तत्त्व हैं। क्योंकि वे पूर्ण ब्रह्म या पर-ब्रह्म हैं।
यदि कोई कहे कि निराकार-निर्विशेष ब्रह्म ही चरम कारण है, तो इसके जवाब में भगवान
श्री कृष्ण कहते हैं (श्रीगीता 14/27),
ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाहममृस्या व्ययस्य
च।
शाश्वतस्य च धर्मस्य सुखरयैकान्तिकस्य
च॥
निराकार निर्विशेष ब्रहम की प्रतिष्ठा भी मैं ही हूँ।
प्रतिष्ठा माने, प्राचुर्य अर्थात भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि ब्रह्म के भी वे ही कारण हैं। जैसे ब्रह्म आनन्दमय हैं, परन्तु कृष्ण
में वह आनन्द प्रचुर मात्रा में है, अर्थात कृष्ण का आनन्द असीम है, जो कि
ब्रह्मानन्द का भी आधार है।'आनन्द ब्रह्म' , यह एक श्रुति मन्त्र है।
दूसरी ओर भगवान रस स्वरूप हैं, सुख स्वरूप हैं, प्रमाण :
रसो वै सः
रसं ह्येवायं लब्ध्वानन्दी भवति (तैः उः 2/27),



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