मंगलवार, 13 अगस्त 2013

श्रील गौरकिशोर दास बाबाजी महाराज

आप अपने अप्राकृत नेत्रों से नवद्वीप मंडल के वासियों को धामवासियों के रूप में देखते थे, तथा माधुकरी में मिले भिक्षा के द्रव्यों को लोगों के द्वारा फेंके मिट्टी के बर्तनों में पका कर किसी प्रकार अपना जीवन चलाया करते थे। ऐसा सुना जाता है कि आप कभी गंगाजल पीकर, कभी गंगा की मिट्टी खाकर और कभी तो भूखे रहकर ही निरन्तर हरिनाम करते रहते थे ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें