आप अपने अप्राकृत नेत्रों से नवद्वीप मंडल के वासियों को धामवासियों के रूप में देखते थे, तथा माधुकरी में मिले भिक्षा के द्रव्यों को लोगों के द्वारा फेंके मिट्टी के बर्तनों में पका कर किसी प्रकार अपना जीवन चलाया करते थे। ऐसा सुना जाता है कि आप कभी गंगाजल पीकर, कभी गंगा की मिट्टी खाकर और कभी तो भूखे रहकर ही निरन्तर हरिनाम करते रहते थे ।

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