शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

श्रीकृष्ण से प्रेम करना

- द्वारा श्रील भक्तिवेदान्त स्वामी महाराज (संस्थापकाचार्य - इस्कान)

 
यदि हम जीवन में वास्तविक सुख चाहते हैं तो हमें अपने प्रेम को श्रीकृष्ण पर केन्द्रित करना होगा।
 
गोविन्दं आदि पुरुषं तं अहं भजामि ।
 
हमारा कार्य मूल पुरुष भगवान् गोविन्द के प्रेम एवं भक्ति के साथ आराधना करना है। यही कृष्णभावना  है। हम लोगों को श्रीकृष्ण से प्रेम करना सिखा रहे हैं। बस इतना ही। हमारा कार्य आपके प्रेम को सही स्थान पर केन्द्रित करना है। सभी प्रेम करना चाहते है किन्तु प्रेम को सही स्थान पर केन्द्रित ना करने के कारण हताश हो गए है। लोग यह नहीं समझते कि उन्हें किस से प्रेम करना है। सबसे पहले आप अपने शरीर से प्रेम करते हैं। थोड़ा आगे जाकर अपने माता-पिता से, फिर अपने समुदाय से, फिर अपने देश और फिर पूरे मानव समाज से करते हैं। और अंतत: आप सभी जीवों से प्रेम करते हैं।
किन्तु अनेक प्रकार का यह प्रेम तब तक आपको संतुष्टि नहीं देगा जब तक आप श्रीकृष्ण से प्रेम करने के स्तर तक नहीं पहुँच जाते। श्रीकृष्ण में पूर्णत: समर्पित होकर उनकी प्रीतिपूर्वक सेवा करने से आप पूर्णत: संतुष्ट हो जायेंगे।
 
उदाहरणत: जब आप झील में एक पत्थर फेंकते हैं तो गोलाकृति में तरंगे निकलती हैं। वह गोलाकृति बढ़ती रहती है, बढ़ती रहती है.....और जब वह तट को स्पर्श करती है तो रुक जाती है। जब तक गोल घेरा झील के तट तक पहुँचता है, वह बढ़ता ही रहता है। इसी प्रकार हमें भी अपने प्रेम को तब तक बढाते रहना होगा जबतक हम परम भगवान् श्रीकृष्ण से प्रेम
नहीं करते।

प्रेम का वास्तविक केंद्र 
 
प्रेम को बढ़ाने की दो विधियां हैं। आप अपने समाज, अपने देश, अपने समुदाय, पूरी मानवता, सभी जीवों इत्यादि से प्रेम करने का अभ्यास कर सकते हैं। या आप प्रत्यक्ष रूप से श्रीकृष्ण से प्रेम कर सकते हैं। श्रीकृष्ण सर्वाकर्षक हैं, उनके प्रति प्रेम में सब कुछ निहित है। क्योंकि श्रीकृष्ण सभी के केंद्र हैं। एक परिवार में यदि आप अपने पिता से प्रेम करते हैं तो आप अपने भाइयों से, अपनी बहनों से, अपने पिता के नौकर से, अपने पिता के घर से, अपने पिता की पत्नी से (अर्थात अपनी माता से), सभी से प्रेम करते हो। पिता केंद्र हैं। इसी प्रकार यदि आप श्रीकृष्ण से प्रेम करेंगे तो आप सभी से प्रेम करने लगेंगे ।
दूसरा उदाहरण है - यदि आप एक पेड़ से प्रेम करते हैं तो आपको केवल पेड़ के मूल में जल देने की आवश्यकता है। ऐसा करने पर पेड़ की पत्तियाँ, फूल, शाखाएं, तना एवं टहनियां सभी को पोषण मिल जायेगा। ऐसा करना ही पेड़ के प्रति आपके प्रेम की सही अभिव्यक्ति हैं। इसी प्रकार यदि आप अपने देश वासियों से प्रेम करते हैं और आप चाहते है कि वह शिक्षित बने और शारीरिक, मानसिक एवं वित्तीय रूप से प्रगति करें तो आप क्या करेंगे? आप सरकार को कर अदा करेंगे और आपको धन शिक्षा विभाग, सुरक्षा विभाग, स्वास्थ्य विभाग, सभी विभागों में वितरित किया जाएगा।


ये उदाहरण हमें दिखाते हैं कि यदि हम वास्तव में सभी से प्रेम करना चाहते हैं तो हमें श्रीकृष्ण से प्रेम करना चाहिए। आप ऐसा करने पर निराश नहीं होंगे क्योंकि श्रीकृष्ण से प्रेम करना पूर्णता है। जब आपका प्रेम पूर्ण होगा तो आप पूर्णतया संतुष्ट हो जायेंगे। यह ऐसा ही है जैसे पेट भरकर भोजन करने के बाद आप कहते हैं," मैं संतुष्ट हूँ, मुझे अभी और कुछ भी नहीं चाहिए।"

वास्तविक अधीनता 

यह कृष्णभावनामृत आन्दोलन बहुत सरल है। बहुत ही सरल। प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी के अधीन है। प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्रता चाहता है किन्तु यह असम्भव है। कोई भी स्वतंत्र नहीं है, सभी किसी न किसी के अधीन हैं। कोई ऐसा नहीं कह सकता, "मैं पूर्णतया स्वतंत्र  हूँ --- क्या कोई ऐसा है जो यह कह सकता है? नहीं। सभी अधीन हैं। और जब आप किसी से प्रेम करते हैं, आप स्वेच्छा से उसके अधीन हो जाते हैं। एक लड़की एक लड़के से कहती है, "मैं तुम्हारे अधीन होना चाहती हूँ।" क्यों? यही हमारा स्वभाव है। हम अधीन होना चाहते हैं। किन्तु हमें यह जानकारी नहीं है कि किसके अधीन होने पर हम पूर्णतया संतुष्ट हो सकते हैं। हम एक व्यक्ति की अधीनता को छोड़ दूसरे की अधीनता को स्वीकार करते हैं। उदाहरणत:, एक नौकर अपने मालिक के अधीन हो जाता है क्योंकि मालिक उसको कुछ हजार रुपये का वेतन देता है। और यदि नौकर दूसरे  स्थान पर अधिक वेतन पता है तो वहां चला जाता है। किन्तु इसका अर्थ यह नहीं हैं कि वह स्वतंत्र हो गया है। वह अभी भी अधीन ही है।
इसलिए श्रीचैतन्य महाप्रभु ने सिखाया है कि यदि आपको किसी न किसी के अधीन होना ही है, किसी न किसी की पूजा करनी ही है, तो आपको श्रीकृष्ण की आराधना करनी चाहिए। तब आप पूर्णतया संतुष्ट हो जायेंगे।
तत्पश्चात्, तद् धाम वृन्दावनम्। इसी प्रकार यदि आपको किसी न किसी स्थान की पूजा करनी ही है, तो श्रीकृष्ण के धाम-वृन्दावन की आराधना करो। सभी किसी न किसी स्थान को प्रेम करना चाहते है- कोई कहता है कि मैं अमरीकी भूमि से प्रेम करता हूँ , कोई कहता है कि मैं रूस की भूमि से प्रेम करता हूँ, इत्यादि, इत्यादि । साधारणतया व्यक्ति ने जहाँ जन्म लिया होता है वह उस भौतिक स्थान से प्रेम करता है । इसलिए भगवान चैतन्य महाप्रभु कहते है कि क्योंकि आप किसी न किसी व्यक्ति से प्रेम करोगे ही तो क्यों ना श्रीकृष्ण से प्रेम करो और आप किसी न किसी स्थान से प्रेम करोगे ही तो क्यों ना वृन्दावन से प्रेम करो। आराध्यो भगवान् व्रजेशतन्यस्तद् धाम वृन्दावनम्।

श्रीकृष्ण से प्रेम करने कि पद्धति 
 
किन्तु यदि कोई कहता है कि ,"मैं श्रीकृष्ण को नहीं देख सकता तो मैं उनसे प्रेम कैसे करूं?" श्रीचैतन्य महाप्रभु इसका उत्तर देते हुए कहते है, रम्या काचिद् उपासना व्रजवधूवर्गेण या कल्पिता अर्थात  यदि आप श्रीकृष्ण की आराधना करने की पद्धति को सीखना चाहते हैं, श्रीकृष्ण से प्रेम करना सीखना चाहते हैं, तो आपको केवल वृन्दावन की गोपियों के पद-चिह्नों का अनुसरण करना होगा। श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों का प्रेम भगवद् प्रेम का चरमोत्कर्ष है। भगवान् की आराधना के अनेक स्तर हैं, जैसे श्रीकृष्ण से यह कहना कि  हे भगवान्, मुझे प्रतिदिन का भोजन दीजिए । यह आरम्भ है भजन का । जब हमे भगवान् की आराधना करना सिखाया जाता है, तो हमें सिखाया जाता है कि मंदिर में जाओ और भगवान् से अपनी आवश्यकताओं की मांग करो। यद्यपि यह प्रारम्भ है परन्तु यह शुद्ध प्रेम नहीं है, भगवान् के प्रति शुद्ध प्रेम गोपियों के बीच ही पाया जाता है। यहाँ हम देख सकते हैं कि वह कैसे श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं।
 
श्रीकृष्ण एक ग्वाले थे। अपने ग्वाल-बाल मित्रों के साथ वे पूरे दिन गायों को चराने के लिए वन में जाते थे और गोपियाँ घर में ही रहती थी। श्रीकृष्ण मीलों दूर रहते थे और गोपियाँ घर में सोच रही होती थीं , "ओह ! श्रीकृष्ण के चरण कमल कितने कोमल है! अब वह कठोर भूमि पर चल रहे हैं और कंकड़ -पत्थर उनके तलवों में  चुभ रहें हैं। अवश्य ही उन्हें दर्द हो रहा होगा।" ऐसा सोचकर गोपियाँ रोती थीं। यह प्रेम है। 
 
जब श्रीकृष्ण वापिस आते थे वे यह नहीं पूछतीं --- हमारे प्रिय कृष्ण, आप हमारे लिए क्या लाये हो? आपकी जेब में क्या हैं? हमें देखने दो। वे केवल इतना सोचतीं थीं कि कैसे श्रीकृष्ण को संतुष्ट किया जाये। गोपियाँ अच्छे-अच्छे कपड़े पहनकर श्रीकृष्ण के समक्ष  जाती थीं। कपड़े पहनते हुए वे सोचती थीं --- ओह, मुझे देख कर श्रीकृष्ण कितने प्रसन्न होंगे ।  साधारणतया एक लड़का या पुरुष अपनी प्रेयसी या पत्नी को अच्छे कपडे पहने देखकर बहुत प्रसन्न होता है। इसलिए अपने पति को संतुष्ट करने के लिए अच्छे कपड़े पहनना स्त्रियों का  स्वभाव है। हम श्रीकृष्ण और गोपियों के प्रेम की चर्चा कर रहें हैं। इनका सम्बन्ध इतना घनिष्ट और अनन्य भक्तिभाव से भरा था कि श्रीकृष्ण ने स्वयं स्वीकार किया है , अथवा गोपियों के प्रति अपने प्रेम को प्रदर्शन करते हुये वे कहते हैं --- मेरी प्रिय गोपियो,  तुम्हारे प्रेम का ऋण चुकाना मेरी क्षमता के परे है।  इसलिए गोपियाँ कृष्ण - प्रेम की पूर्णता के चरमोत्कर्ष का प्रतीक हैं।
 
मैं आप सभी को श्रीचैतन्य महाप्रभु के आन्दोलन का वर्णन कर रहा हूँ । वे हमें निर्देश दे रहें है कि प्रेम करने योग्य केवल एक ही व्यक्ति है और वे हैं --- श्रीकृष्ण । प्रेम करने योग्य केवल एक ही स्थान है और वह है --- वृन्दावन और श्रीकृष्ण से प्रेम करने की पद्धति को गोपियों के उदाहरण द्वारा दिखाया गया है। भक्तों के अनेक स्तर हैं और गोपियाँ सर्वोच्च स्तर पर हैं और गोपियाँ में राधारानी सर्वोच्च हैं इसलिए श्रीकृष्ण के प्रति राधारानी के प्रेम को कोई भी पार नहीं कर सकता।

शास्त्रों पर आधारित पद्धति
 

श्रीकृष्ण से प्रेम करने के लिए विज्ञान को सीखने के लिए कुछ प्रमाणिक पुस्तके अथवा शास्त्र होने चाहिए। श्रीचैतन्य महाप्रभु कहते हैं, वह पुस्तक है -- श्रीमदभागवतम् । श्रीमदभागवतम्  प्रमाण अमलम् । श्रीमदभागवतम्  में वर्णन है कि कैसे श्रीकृष्ण से प्रेम किया जाए। इससे अच्छा विवरण और कहीं नहीं है। इसमें प्रारंभ से ही सिखाया गया है कि भगवान् से कैसे प्रेम किया जाये। 
जिन्होंने श्रीमदभागवतम् का अध्ययन किया है वे जानते हैं कि पहले स्कन्ध का पहला श्लोक है जन्माद्यस्य यत :......सत्यं परं धीमहि । प्रारम्भ में लेखक कहते हैं, "मैं उन परम भगवान् को प्रणाम करता हूँ जिनसे सब कुछ आता है।" इसलिए यह विशेष विवरण है। यदि आप भगवान् या श्रीकृष्ण से प्रेम करना  सीखना चाहते हैं तो आपको श्रीमद्भागवतम्  का अध्ययन अवश्य करना चाहिए। श्रीमद्भागवतम् का अध्ययन करने से पूर्व भगवदगीता का अध्ययन आवश्यक है। अपने और भगवान् के वास्तविक स्वभाव को समझने के लिए और भगवान् के साथ अपने सम्बन्ध को समझने के लिए  भगवदगीता पढ़ना आवश्यक है और जब आप थोड़ी प्रगति कर लेंगे, जब आप पूर्णतया आश्वस्त हो जायेंगे कि श्रीकृष्ण ही प्रेम करने की वास्तविक वस्तु हैं तब आपको श्रीमद्भागवतम् का अध्ययन करना चहिये। 
 भगवदगीता का ज्ञान प्रवेश-परीक्षा के समान है। जिस प्रकार विद्यार्थी हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण कर कॉलेज में प्रवेश करते हैं उसी प्रकार ' भगवद् प्रेम कैसे किया जाए ?' यह सीखने के लिए 'हाईस्कूल परीक्षा' को  भगवदगीता यथारूप का अध्ययन कर उत्तीर्ण करना होग। तत्पश्चात आपको श्रीमद्भागवतम् का अध्ययन करना चाहिए- वह स्नातक कोर्स है। जब आप और प्रगति कर लेते हैं, स्नातकोत्तर स्तर में, आपको श्री चैतन्य चरितामृत का अध्ययन करना चाहिये। इस प्रकार आपको कृष्ण-प्रेम का विज्ञान सीखने  में तनिक भी कठिनाई नहीं होगी ।  
  
तो हमें सीखना है कि श्रीकृष्ण से कैसे प्रेम किया जाए? इसीलिये आपको आमंत्रित करने हेतु हम अपने शिष्यों को गली-गली भेज रहें है और यदि आप इस अवसर का लाभ उठाएंगे तो आपका जीवन सफल हो जायेगा । प्रेम पुमर्थो महान । इस मानव जीवन का उद्देश्य भगवद्प्रेम का विकास करना है । अन्य सभी योनियों में हमने और किसी न किसी वस्तु से प्रेम किया है- पक्षियों के रूप में अपने घोसलों से, मधुमक्खियों के रूप में अपने छत्तों से, इत्यादि । एक पक्षी या मधुमक्खी को यह सिखाने की आवश्यकता नहीं है कि अपने घोंसले या छत्ते से कैसे प्रेम किया जाए, क्योंकि वह स्वभाविक है। अपने घर से, अपने देश से, अपने पति से, अपनी पत्नी से इत्यादि से प्रेम करना पशु पक्षियों में भी पाया जाता है । किन्तु उस प्रकार का प्रेम आपको संतुष्टि प्रदान नहीं करेगा । आप निराश हो जायेंगे । क्योंकि यह शरीर नश्वर है और ये सभी प्रेम सभी थोड़े समय के लिए ही है और वह भी शुद्ध नहीं है । यह आपके एवं श्रीकृष्ण के प्रेम का परावर्तित रूप हैं । यदि आप वास्तव में शान्ति चाहते हैं, यदि आप वास्तव में संतुष्टि चाहते हैं, यदि आप भ्रमित होना नहीं चाहते, श्रीकृष्ण से प्रेम करने का प्रयास करें । तब आपका जीवन सफल हो जाएगा । 
 
कृष्णभावनामृत आन्दोलन की स्थापना लोगों को गुमराह करने या धोखा देने के लिए नहीं की गयी  है । यह अत्यधिक प्रमाणिक आन्दोलन है, जो अनेक वैदिक शास्त्रों - भगवद्गीता, श्रीमदभागवतम्, वेदान्तसूत्र व पुराणों  इत्यादि पर आधारित है । अनेक महान संतो ने पूर्णता को प्राप्त करने हेतु कृष्ण भावना पद्धति को स्वीकार किया है । इसका विशेष उदाहरण श्री चैतन्य महाप्रभु हैं । आप उनके चित्र में देख सकते हैं कि वे कैसे भाव-विभोर हो कर नाच रहे हैं । इसलिए आपको यह कला सीखनी होगी तब आपका जीवन भी सफल हो जायेगा । आपको किसी कृत्रिम पद्धति का अभ्यास नहीं करना हैं और अनेक मानसिक कल्पनाओं से मन को भ्रमित नहीं करना हैं । आपके अंदर अन्यों से प्रेम करने की इच्छा है, यह स्वाभाविक है । आप अपने प्रेम को गलत स्थान पर केन्द्रित कर रहे हैं, इसलिए आप निराश एवं भ्रमित हैं । यदि आप भ्रमित नहीं होना चाहते, यदि आप निराश नहीं होना चाहते हैं तो आपको श्रीकृष्ण से प्रेम करने का प्रयास करना चाहिए। आप अनुभव करेंगे कि किस प्रकार आप सुख - शान्ति की प्राप्ति एवं अन्य जो कुछ भी आप चाहते है, उसे प्राप्त करने में प्रगति कर रहे हैं ।  
 

 

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