पहली
बार जब मैं पंजाब - प्रचार में कोलकाता से प्रचार - पार्टी के साथ आया तो मुझे बड़ा
अच्छा लगा । हम जब ट्रेन में आ रहे थे तो श्रील गुरुमहाराज जी ने मुझे पूछा - सबकी
तो सीट रिज़र्व है, तुम कहाँ सोओगे?
कन्हाई
- जब रात होगी तो देख लूँगा, क्या करना है।
रात
के समय सभी अपनी-अपनी बर्थ पर बिस्तर लगा रहे है। मुस्कराते हुए गुरूजी ने मुझे
पूछा-तुम क्या करोगे?
मेरे
पास जवाब नही था, इसलिए चुप हो गया। तभी गुरूजी ने छ: सीटों के बीच में जो जगह होती
है उसके बीच में इशारा करके कहा-यहाँ पर अपना बिस्तर लगाओ।
मैंने
वहाँ बिस्तर लगा दिया। धीरे-धीरे सब सोने लगे। मैं भी लेट गया। कोलकाता से जब ट्रेन
चली तो मौसम काफी गरम था। इसलिए मैं बिना कोई चादर ओढ़े सो गया। वैसे भी मेरे पास
ओढने वाली गर्म चादर थी भी नहीं। आधी रात के बाद मेरी नींद खुली, मैंने अनुभव किया
कि मुझे ठण्ड लगने लगी है। मैंने अपने हाथ पैर समेट लिये और दुबारा सो गया।
कुछ
समय बाद जब मेरी नींद खुली तो मैंने अनुभव किया कि मेरे ऊपर किसी ने गर्म शाल उढ़ा
दिया है। चारों और अँधेरा था। मैं आराम से सोता रहा। थोड़ी देर बाद जब मैं बाथरूम के
लिये उठा तब खिड़की से थोड़ी-थोड़ी लाइट आ रही थी। मैंने देखा कि वह गर्म शाल भगवे रंग
की थी। मैं सकपका गया क्योंकि तब तो मेरे वस्त्र सफ़ेद थे। मैं सोचने लगा कि किसका
शाल है ये ?
जब
मेरी नज़र गुरूजी की और गई तो मैंने देखा कि वे इतनी ठण्ड में अपना पतला सा गलवस्त्र
ओढ़ कर लेट हुए है। अपना गर्मशाल रात को उन्होंने मेरे ऊपर डाल दिया था। मेरा हृदय
गुरूजी के वात्सल्य-प्रेम से भर आया और मैं सोचने लगा कि कितने महान हैं हमारे
गुरूजी - वे स्वयं सारी रात ठण्ड में पतली चादर में सोते रहे और उन्होंने मुझे अपना
गर्मशाल ओढ़ा दिया।
वैष्णवदासानुदास,
कृष्ण किंकर दास,
ब्रह्मचारी।
(कन्हाई
प्रभु)
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