रविवार, 7 अप्रैल 2013

हिन्दी] कुछ प्रश्न-उत्तर -4


प्र:- अक्सर ऐसा सुनने में आता है कि कृष्ण अपने भक्तों के प्रति बहुत दयामय होते है, उनकी ज़िन्दगी में जो भी कुछ होता है वो कृष्ण की इच्छा अनुसार होता है ना की उनके कर्मो के फलानुसार। आप इस बात से कितने सहमत है?

उ:- भगवद गीता में कहा गया है की श्री कृष्ण समदर्शी है अर्थात उनके लिए सब समान है, पर वह अपने भक्तों का विशेष ध्यान रखते है। यह बात श्री कृष्ण के निष्पक्षता के सिद्धांत का उलंघन नही करती क्योंकि कोई भी श्री कृष्ण का भक्त बन सकता है। यधपि श्री कृष्ण के भक्त की ज़िन्दगी में जो भी कुछ होता है, ऐसा नहीं है कि वो प्रत्यक्ष रूप से श्री कृष्ण ही करते है। अगर कोई उच्च श्रेणी का भक्त जो श्रीकृष्ण प्रेम में डूबा रहता है, तो श्री कृष्ण भी ऐसे भक्त के प्रेम में डूबे रहते है और भक्तों के सुख के लिए वे विभिन्न लीलाएं करते है। श्री जीव गोस्वामी जी के अनुसार भक्ति करने से संचित कर्म नष्ट हो जाते है जबकि उच्च कोटि के भक्तों के तो प्रारब्ध कर्म भी नष्ट हो जाते है। इसका अर्थ यह नहीं है कि श्री कृष्ण अपने नवीन भक्तों के प्रति दयावान नहीं होते। अगर ऐसा होता तो उनके संचित कर्म कैसे नष्ट होते? शास्त्रों में कहा गया है कि नामाभास से ही कर्म नष्ट हो जाते है। नामाभास का अर्थ है श्री कृष्ण का हमारी ज़िन्दगी में आंशिक प्रभाव । जब किसी के हृदय में शुद्ध नाम प्रगट होता है तो वह पूर्ण रूप से श्री कृष्ण की शरण में आ जाता है। ऐसे भक्त के लिए श्री कृष्ण कहते हैं - योगक्षेम वहाम्यहम् अर्थात मैं अपने भक्त का सारा जिम्मा अपने ऊपर ले लेता हूँ, उसे जिस वस्तु की जरूरत होती वो देता हूँ और हर तरह से उसकी रक्षा करता हूँ।


WRITTEN BY SWAMI B.V. TRIPURARI   
SUNDAY, 11 JUNE 2006

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