सोमवार, 12 जुलाई 2021

श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के साढ़े तीन अन्तरंग भक्तों में से एक थे आप

 बात उन दिनों की है, जब श्रीचैतन्य महाप्रभु अपने सभी पार्षदों के साथ श्रीधाम नीलाचल में थे। एक दिन श्रीमन् चैतन्य महाप्रभु जी गुण्डिचा मन्दिर के पास के बगीचों में भक्तों के साथ रास-लीला के गीतों का रसास्वादन कर रहे थे। । श्रीकृष्ण की लीलाओं के भाव में ही डूबे सब समुद्र के किनारे आ गये।

श्रीमहाप्रभु समुद्र को देखते ही, उसको यमुना समझ कर उस में कूद पड़े। श्रीमहाप्रभु, कृष्ण-प्रेम के भाव में ही मस्त थे, आपके श्रीअंग, तैरते-तैरते कोणार्क की ओर जाने लगे । उधर किसी ने मछली पकड़ने के लिये जाल बिछाया हुआ था। उसे लगा की कोई बड़ी मछ्ली आ फसी। उसने बड़ी प्रसन्नता से जाल खींचा तो उसने देख कि उसमें मछली नहीं बल्कि एक विशाल शरीर वाला आदमी है, जिसके हाथ-पैर फैले हुये हैं।

उसने उत्सुकता से श्रीमहाप्रभु को छुआ, तो साथ ही साथ उसे श्रीकृष्ण प्रेम के विकार आने लगे।  वह भी प्रेमाविष्ट होकर 'हा कृष्ण ! हा कृष्ण!' कहते हुये कृष्ण-प्रेम के भाव में रोने लगा।

इधर श्रीस्वरूप दामोदर गोस्वामी जी ने जब देखा कि भक्तों की टोली में श्रीचैतन्य महाप्रभु जी नहीं हैं, तो सब आपको ढूंढने लगे। बहुत समय के उपरान्त आप सभी भक्तों ने देखा कि एक जाल वाले ने श्रीमहाप्रभु को अपने कन्धे पर उठाया हुआ है।

उस जाल वाले कि अद्भुत दशा देखकर श्रीस्वरूप दामोदर गोस्वामी जी ने, उसे श्रीचैतन्य महाप्रभु का तत्त्व समझाया और तीन बार अपने हाथ की हथेली से उसकी गाल थपथपाई।

आपकी अचिन्त्य शक्ति के प्रभाव से वो जाल वाला शान्त हो गया।
भक्तों के उच्च स्वर से श्रीहरिनाम संकीर्तन करते रहने पर, श्रीचैतन्य महाप्रभु जी हुंकार भरते हुये उठ खड़े हुये।

श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के साड़े तीन अन्तरंग भक्त थे, उनमें से श्रीस्वरूप दामोदर गोस्वामी जी भी एक थे।

चूँकि आप श्रीमन् महाप्रभु जी के अति अन्तरंग थे, इसलिये आप श्रीमन् महाप्रभु अवतार के लीला-रहस्यों के गूढ़ कारणों का पता था।
आप ही के माध्यम से श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की गूढ़ लीला के रहस्य आदि प्रचारित हुये।

श्रील स्वरूप दामोदर गोस्वामी जी की जय !!!!

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