इस्कान के संस्थापक आचार्य श्रील ए. सी. भक्ति वेदान्त स्वामी महाराज जी से एक बार कुछ पत्रकारों ने पूछा कि आपने पूरे विश्व में हरिनाम का प्रचार किया, बहुत से लोगों ने आपसे दीक्षा ली होगी, बहुत से आपके शिष्य बने होंगे, हम यह जानना चाहते हैं कि जितने भी भक्त लोग आपने सम्पर्क में आये, आपको क्या लगता है कि उनमें से कितने भक्त, शुद्ध भक्त हैं?
श्रील स्वामी महाराज जी -- शत - प्रतिशत। (100%)
पत्रकार हैरान हो गये। बोले - जो भी आपने सम्पर्क में आया है, वो 100% शुद्ध भक्त हो गया।
श्रील स्वामी महाराज जी -- बिल्कुल 100% बस एक ही शर्त है कि वो मुझसे जुड़े रहें। इस्कान से जुड़े रहें।
श्रील स्वामी महाराज जी -- उदाहरण के लिए, मान लिजिए एक आम का पेड़ है। उस आम के पेड़ में जब आम लगते हैं………………उससे पहले फूल होते हैं, फिर छोटी-छोटी अम्बियां होती हैं। फिर धीरे-धीरे फल बड़ा होता है किन्तु उसमें खट्टापन होता है। फिर कसैलापन आता है, फिर फीका होता है, फिर जब पूरा पक जाता है तो फलों का राजा आम हो जाता है, एकदम मीठा हो जाता है। फिर वो भगवान के भोग लगाने में, वैष्णव सेवा में, आदि में उपयोग होता है। यह वही आम है जो पेड़ से पूरी तरह जुड़ा रहा है। इसी प्रकार जो शिष्य लोग मेरे से पूरी तरह जुड़े रहेंगे, वो शुद्ध भक्त बन जायेंगे।……………
इससे सीखने वाली बात यह है कि अगर हम किसी कारणवश वैष्णव संग से दूर हो जाते हैं, गुरू से दूर हो जाते हैं, इस्कान अथवा श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ आदि संस्थाओं से दूर हो जाते हैं, तो नुक्सान हमें ही होगा। जैसे अधपका फल अगर पेड़ से अलग हो जाये तो वो सड़ जाता है। उसी प्रकार अगर हमने अपने अहं के कारण अपने गुरू-गृह में जाना छोड़ दिया या बुद्धि ऐसी भ्रमित हो गई कि कोई भजन तो कर नहीं रहा है अतः क्यों जाना है वहाँ पर, कोई भी कारण रहा हो, जिसके कारण आपने साधुसंग, गुरू गृह में सेवा, श्रीहरिनाम संकीर्तन करना छोड़ दिया तो आप शुद्ध भक्त नहीं बन सकते।
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