एक व्यक्ति जो पेशे से ऐडवोकेट था, श्रील निष्किंचन महाराज जी के पास आया व बोला - महाराज जी कोई हरिकथा सुनायें, कोई ज्ञान की बात सुनायें।
महाराज जी - क्या ज्ञान की बात बतायें। सबसे बड़ा ज्ञान यह है कि हरिनाम करो। जैसे, शरिर की खुराक भोजन होती है, उसी प्रकार आत्मा की खुराक भजन होता है। शरीर को भोजन न मिलने से शरीर कमज़ोर हो जाता है, उसी प्रकार आत्मा को भजन की खुराक नहीं मिलने से आत्म-बल कम हो जाता है।
एडवोकेट - महाराज! वो तो ठीक है लेकिन, हरिनाम में तो रुचि नहीं होती। हरिनाम रटने का मन ही नहीं करता।
महाराज -- भाई! भोजन तो करते हो। जैसे भोजन करते हो, वैसे ही भजन भी करो।
एडवोकेट - महाराज, भोजन तो करना ही पड़ता है क्योंकि भूख लग जाती है।
महाराज -- अच्छा! यह बताओ कि मान लो किसी दिन आपकी छुट्टी हो कोर्ट से, और आप अपने बच्चे को बुलाकर कहो, काका - नाश्ता कर ले। और बच्चा कहे कि भूख नहीं है। तो आप अपनी पत्नी से कहेंगे कि इसे कुछ खिला दो। पत्नी की बात भी उसने नहीं सुनी। आपने सोचा कि कोई बात नहीं।................ दोपहर के भोजन के समय भी बच्चे ने खाना खाने से मना कर दिया। शाम को भी उसने यही कहा कि भूख ही नहीं है। .....................अगले दिन भी आपने बच्चे ने यही रट लगाई कि मुझे भूख नहीं है, मैंने कुछ नहीं खाना। तो आप क्या सोचेंगे?
महाराज -- क्या आप सोचेंगे कि हम इतना कमा रहे हैं, पेट के लिए ही तो कमा रहे हैं। इसको भूख ही नहीं लग रही। चलो अच्छा हो गया। ना खाना होगा, ना कमाना पड़ेगा। यह तो बढ़िया हो गया इसके लिए। क्या आप ऐसा करोगे?
एडवोकेट - जी नहीं।
महाराज - तो क्या करोगे?
एडवोकेट - हम उसे डाक्टर के पास ले जायेंगे।
महाराज -- अच्छा, तो डाक्टर भी अगर यही बोले कि चलो आपके लिए तो अच्छा हो गया। मुझे भी यहाँ बैठना पढ़ता है कमाने के लिए। अब तो आपको चिन्ता ही नहीं करनी पड़ेगी।……………… तो आप डाक्टर को यही बोलोगे, कि डाक्टर साहब आप मज़ाक न करो, देखो तो सही कि क्या हो गया है इसे?
एडवोकेट -- जी।
महाराज -- डाक्टर आपके कहने पर आपके बच्चे को देखेगा व रोग का इलाज बताकर दवाई देगा जिसे आप नियम से अपने बच्चे को खिलाओगे।
एडवोकेट -- जी।
महाराज -- धीरे-धीरे उसको भूख लगने लगेगी। क्यों ठीक है न?
एडवोकेट -- जी।
महाराज -- जैसे आपके बच्चे की भूख मर गई और आप निश्चिन्त नहीं हुए, बल्कि उसका इलाज कराने दौड़े, उसी प्रकार आपको हरिनाम की इच्छा नहीं हो रही है तो निश्चिन्त मत होओ। डाक्टर (शुद्ध भक्त) के पास जाओ और पूछो कि मुझे क्या हो गया है? और जैसे वो बोले वैसा करो। जो दवाई दे उसे करो, जो परहेज़ बताये उसका पालन करो।
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