सोमवार, 13 अप्रैल 2020

जगद्गुरु श्रील प्रभुपाद जी के शिष्य श्री सन्त गोस्वामी महाराज जी

आपका आविर्भाव कृष्ण षष्टी तिथि को ब्रह्म मुहूर्त में हुआ...आपके पिता ने जन्म लग्न और आपके सद्गुण को देखकर अपने घर में बने मन्दिर के ठाकुर जी के नाम पर ही आपका नाम श्रीराधा रमण रखा।

बचपन में ही अपने भाई बहनों के साथ आप गीली मिट्टी से  श्रीकृष्ण जी की मूर्ति बनाकर उन्हें पुष्प-फल लेकर आँख बंद करके ध्यान से ठाकुर जी को भोग लगाकर सब को प्रसाद देते थे।

एक बार श्रील प्रभुपाद इनके पिता श्री वैकुंठ नाथ बाबू के घर आए..... उस समय पूज्यपाद त्रिदण्डीस्वामी श्रीमद् भक्ति हृदय वन महाराज जी और पूज्यपाद  श्री प्रणवानंद ब्रह्मचारी जी ने आपको मठ में साथ ले जाने की इच्छा कही तो कुछ समय पश्चात आपके पिताजी स्वयं श्रीधाम मायापुर के श्रीचैतन्य मठ में आए. वहाँ की सुंदर व्यवस्था देखकर बहुत संतुष्ट हुए और कुछ समय पश्चात अपने पुत्र राधारमण को श्रीचैतन्य मठ में छोड़ आए..... श्रील प्रभुपाद जी ने आपको वहाँ के अच्छे स्कूल में भर्ती करवा दिया.. 

श्रील प्रभुपाद जी ने आपकी योग्यता को देखते हुए आपको   दीक्षा दी और गेरवे वस्त्र दिए तथा   आपको श्रीराधारमण दास ब्रह्मचारी नाम दिया ।
जहाँ भगवान् ने खीर चोरी करने  की लीला की थी, उस मन्दिर में ही पूज्यपाद त्रिदण्डीस्वामी श्रीमद्  भक्ति विचार यायावर महाराज से संन्यास ले कर त्रिदण्डिस्वामी श्रील भक्ति कुमुद संत गोस्वामी महाराज जी के नाम से गौड़ीय वैष्णव जगत में  विख्यात हुए......

श्रील प्रभुपाद जी के  के पश्चात प्रभुपाद जी के बहुत से शिष्य मठ छोड़कर अपने अपने घर या अन्य जगहों पर चले गये थे.........हमारे परम गुरुदेव परमाराध्य श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी जी, जो अपने गुरुभाईयों से तह दिल से प्यार करते थे,  सब घरों में घूम घूमकर सब को समझा समझा कर वापिस मठ में वापिस लेकर आए । वे जिन जिन वैष्णवों को घर से वापस लाए, उसमें से एक आप भी थे ।

अखिल भारतीय श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के निवर्तमान आचार्य परमाराध्य श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी आप पर अगाध श्रद्धा करते थे ।

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