मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

आदि-शंकराचार्यजी वैष्णव धर्म के परम बन्धु हैं ।


श्रीशंकर जी वैष्णवों के गुरु हैं। इसी कारण से भगवान चैतन्य महाप्रभु जी ने आचार्य कहकर उनका उल्लेख किया है। श्रीशंकर स्वयं पूर्ण वैष्णव हैं। जिस समय वे भारत में प्रकट हुए थे, उस समय उनके समान एक गुणावतार होने की बहुत जरूरत थी।भारत में वेद-शास्त्र की आलोचना और वर्णाश्रम-धर्म के क्रिया-कलाप, बौद्धों के शून्यवाद से चक्कर में पड़कर शून्यप्रायः हो गये थे। शून्यवाद ईश्वर-विहीन है। उसमें जीवात्मा का तत्त्व कुछ-कुछ स्वीकृत होने पर भी वह धर्म बिल्कुल ही अनित्य है।                                             



उस समय ऐसी स्थिति हो गयी थी कि ब्राह्मणगण प्रायः बौद्ध होकर वैदिक धर्म का परित्याग करते जा रहे थे। असाधारण शक्तिशाली श्रीशंकर जी के अवतार श्रीशंकराचार्य के प्रकट होकर वेद-शास्त्र के सम्मान की स्थापना की। यह कार्य असाधारण था।     

                                                                                                 भारतवर्ष इस महान कार्य के लिये श्रीशंकराचार्य जी का सदा ॠणी रहेगा।सभी कार्यों क जगत् में दो प्रकार से विचार होता है। कुछ कार्य तात्कालिक होते हैं और कुछ सार्वकालिक । श्रीशंकराचार्य जी का यह कार्य तात्कालिक था। श्रीशंकराचार्य जी ने जो नींव डाली, उसी नींव के ऊपर श्रीरामानुजाचार्य आदि आचार्यों ने विशुद्ध वैष्णव-धर्म का महल खड़ा किया। अतएव श्रीशंकरावतार (श्रीशंकराचार्य जी) वैष्णव धर्म के परम बन्धु हैं।

(श्रील भक्ति विनोद ठाकुर द्वारा रचित - श्रीजैव धर्म से)    

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